कोरिया।
जिला मुख्यालय बैकुंठपुर सहित पूरे कोरिया जिले में इस वर्ष करमा पर्व की धूम देखने को मिली। परंपरागत रूप से आदिवासी एवं जनजातीय समाज का प्रमुख पर्व माने जाने वाला करमा अब धीरे-धीरे शहरी क्षेत्रों में भी लोकप्रिय होता जा रहा है। भाई-बहन के अटूट रिश्ते, परिवार की सलामती और खुशहाली की कामना के साथ मनाया जाने वाला यह पर्व सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक माना जाता है।
करमा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
करमा पर्व में करम पेड़ की डाली को घर लाकर पूजा की जाती है। मान्यता है कि करम वृक्ष समृद्धि, भाई-बहन के रिश्ते और परिवार के सुख का रक्षक होता है। इस दिन ग्रामीण और परिवारजन उपवास रखते हैं और शाम को करमा कथा सुनते हैं। इसके बाद रातभर करमा गीत और नृत्य का सिलसिला चलता है। महिलाएं और पुरुष ढोल-मादर की थाप पर थिरकते हुए करमा देव की स्तुति करते हैं। पूरी रात चलने वाले इस नृत्य में सामाजिक मेलजोल और सामूहिक उत्सव का संदेश निहित होता है।
पूजा-अर्चना और जवारों का महत्व
करमा पर्व में खासतौर पर जवार (नव अंकुरित धान या गेहूं) बोए जाते हैं। इन्हें करमा पूजा के दौरान पवित्र माना जाता है। अगले दिन सुबह व्रत का पारण करते समय परिवारजन जवारों को अपने कानों में लगाते हैं। ऐसा करने से परिवार की सलामती, रोगों से मुक्ति और सुख-समृद्धि की कामना पूरी होती है। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी अपनी मौलिकता के साथ जीवित है।
जिले में अवकाश, उत्सव का उल्लास
करमा पर्व के महत्व को देखते हुए कोरिया जिला प्रशासन ने भी इस दिन अवकाश घोषित किया। जिससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के लोग परिवार सहित उत्सव का आनंद उठा सके। रातभर गीत-संगीत और नृत्य में डूबे रहे लोग सुबह विधि-विधान से पूजा अर्चना कर जवारों का पारण किया। बैकुंठपुर समेत पूरे जिले में करमा पर्व ने एकता, भाईचारे और परंपरागत संस्कृति की अनूठी छटा बिखेर दी।