गैर-राजनीतिक संगठन की जरूरत और जनसहयोग का महत्व, तब विकास के मुद्दों का नही होता था विरोध, कॉलेज के निर्माण में मिला था लोगो का जनसहयोग

Chandrakant Pargir

 


- - चन्द्रकान्त पारगीर

कोरिया जिले में पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए दी गई भूमि को लेकर इस समय हर ओर चर्चा है। सोशल मीडिया से लेकर चौक-चौराहों तक लोग इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं। कई नागरिक यह भी सुझाव दे रहे हैं कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर विचार-विमर्श और सामूहिक राय बनाने के लिए एक गैर-राजनीतिक संगठन का निर्माण होना चाहिए। इसका सीधा कारण है – विकास के नाम पर लिए जा रहे फैसलों में जनता की सहभागिता का न होना।


आज की स्थिति यह है कि जिले से जुड़े कई अहम निर्णय सीधे-सीधे जनता की राय लिए बिना कर दिए जाते हैं। परिणामस्वरूप, इन फैसलों पर अविश्वास और विरोध की स्थिति पैदा हो जाती है। जनता महसूस करती है कि उनके भविष्य और उनकी सुविधाओं से जुड़े मुद्दों पर उनकी राय को महत्व नहीं दिया जा रहा। यही वजह है कि लगभग हर फैसले का स्वागत होने के बजाय विरोध होने लगता है।


परंतु यदि अतीत पर नज़र डालें, तो तस्वीर बिल्कुल अलग थी। 1980 से 2000 का दौर कोरिया जिले में जनसहभागिता के सुनहरे समय के रूप में याद किया जाता है। उस दौर में पूर्व वित्त मंत्री डॉ. रामचंद्र सिंहदेव, जिन्हें लोग स्नेह से कोरिया कुमार कहते थे, विकास कार्यों में जनता को साथ लेकर चलने के लिए प्रसिद्ध थे। पहले CSR नही होता था उसे तब CD  (कम्युनिटी डेवलपमेंट) मद कहा जाता था, इसकी राशि आने पर वे स्थानीय विश्राम भवन में आम नागरिकों की बैठक बुलाते और पूछते कि इस राशि का उपयोग कहाँ किया जाना चाहिए। जब कॉलेज भवन निर्माण का प्रस्ताव आया और राशि अपर्याप्त थी, तो उन्होंने जनता से योगदान की अपील की। व्यापारी और आमजन आगे आए, आर्थिक सहयोग किया और निर्माण कार्य की निगरानी भी स्वयं की। परिणामस्वरूप जो भवन तैयार हुआ, उसकी गुणवत्ता और स्थायित्व आज भी उस जनसहयोग की गवाही देता है।


इसी तरह, वे गाँव-गाँव जाकर बताते कि कहाँ बांध बनने से किसे लाभ होगा। लोग उनके साथ जुड़ते, फैसलों को अपनी जिम्मेदारी मानते और विरोध का प्रश्न ही नहीं उठता। कारण सरल था—जनसहयोग और जनसहमति।


आप जानकर हैरान रह जाएंगे उन्होंने झुमका के डुबान क्षेत्र में आने वाले लोगो को मछली पकड़ने की छूट दिलवाई थी, ताकि वो बांध का उपयोग, रखरखाव, निगरानी के साथ जीविका का बसर भी अच्छी तरह से कर सके और उनका जुड़ाव बांध के साथ रहे।


आज विकास कार्यों में वही जनसहभागिता और पारदर्शिता नज़र नहीं आती। जनता से संवाद टूट गया है और परिणामस्वरूप हर निर्णय संदेह और विरोध से घिर जाता है।

 

जनसहयोग सिर्फ विकास का औजार नहीं, बल्कि उसकी आत्मा है। कोरिया की पुरानी परंपरा यही रही है कि जब जनता साथ खड़ी होती है तो विकास की इमारत मजबूत और टिकाऊ बनती है। अब जरूरत है उस परंपरा को फिर से जीवित करने की।


ऐसे में कुछ लोग अब एक गैर-राजनीतिक संगठन खड़ा करने की मांग कर रहे है, जो जनता और प्रशासन के बीच सेतु का कार्य करे। ऐसे लोगो का कहना है जब फैसले जनता की राय और सहयोग से होंगे, तो वे स्थायी, पारदर्शी और स्वीकार्य होंगे।


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