-चन्द्रकान्त पारगीर
आज राष्ट्रीय खेल दिवस है। खेलों का महत्व केवल स्वास्थ्य और मनोरंजन तक सीमित नहीं, बल्कि यह अनुशासन, टीम स्पिरिट और आत्मविश्वास का भी प्रतीक है। मगर अफसोस की बात है कि कोरिया जिले की खेल संस्कृति आज बदहाली के दौर से गुजर रही है।
एक समय बैकुंठपुर खेलों का गढ़ माना जाता था। हैंडबॉल में यहां के खिलाड़ियों ने मप्र स्तर पर लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी और प्रदेश में कई वर्षों तक दूसरा स्थान हासिल किया। शासकीय रामानुज स्कूल से निकले कई खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचे। फुटबॉल में भी बैकुंठपुर के खिलाड़ियों ने नेशनल स्तर पर अपनी पहचान बनाई। कबड्डी, खो-खो और पारंपरिक खेलों का जुनून हर गली-मोहल्ले में दिखता था। 90 के दशक का क्रिकेट तो अलग ही पहचान रखता था, जब ड्यूज बॉल, पैड्स और ग्लव्स के साथ यहां के खिलाड़ी अपने जौहर दिखाते थे। बास्केटबॉल में भी बैकुंठपुर के खिलाड़ी इंदौर और ग्वालियर तक अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं।
आज स्थिति उलट है। मैदान हैं, पर खेल नहीं। एसईसीएल का मैदान आयोजनों तक सीमित है, साफ-सफाई और नियमित खेल गतिविधियां यहां नहीं होतीं। रामानुज हायर सेकेंडरी स्कूल का मिनी स्टेडियम ही अब खेल प्रेमियों का सहारा है। यही नहीं, भाजपा सरकार के तीसरे कार्यकाल में "जाग युवा जाग" कार्यक्रम के दौरान बास्केटबॉल का मैदान तोड़ दिया गया और तब से इस खेल का अस्तित्व ही खत्म हो गया।
कोरिया जिले की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यहां एक भी खेल संघ पंजीकृत नहीं है। सिर्फ एक कराते संघ का पता चिरमिरी का है। अविभाजित कोरिया में पंजीकृत संघ मनेन्द्रगढ़ के थे, लेकिन 2022 में जिला अलग हो जाने के बाद भी अब तक कोई नया संघ गठित नहीं किया गया। नतीजा यह कि पूरे वर्ष भर खेल आयोजन महज औपचारिकता बनकर रह जाते हैं।
राष्ट्रीय खेल दिवस पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर युवा पीढ़ी को खेलों से जोड़ने की ठोस पहल क्यों नहीं हो रही? जब तक स्थानीय स्तर पर खेल संघों का गठन नहीं होगा, मैदानों की देखरेख और खिलाड़ियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं होगी, तब तक खेल दिवस का महत्व केवल भाषणों और औपचारिक आयोजनों तक ही सीमित रहेगा।
आज जरूरत है कि जिले के जिम्मेदार लोग खेलों को पुनर्जीवित करने के लिए आगे आएं। स्कूल स्तर से लेकर जिला स्तर तक खेल संघों का गठन हो, मैदानों का संरक्षण हो और खिलाड़ियों को मंच मिले। तभी कोरिया जिले की खेल संस्कृति फिर से चमक पाएगी और राष्ट्रीय खेल दिवस सही मायनों में सार्थक होगा।