एमसीबी। छत्तीसगढ़ राज्य के एमसीबी जिले के जनपद पंचायत भरतपुर समेत पूरे जिले में मजदूरों के हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। बीते डेढ़ वर्ष से मनरेगा के तहत नए कार्यों की स्वीकृति पूरी तरह बंद है। ग्रामीणों का कहना है कि अब केवल प्रधानमंत्री आवास योजना के निर्माण कार्य में ही कुछ मजदूरी मिल रही है, लेकिन यह सीमित संख्या में है, जिससे सभी मजदूरों को काम नहीं मिल पा रहा।
खेती-किसानी का सीजन पूरा होने के बाद मजदूर आमतौर पर मनरेगा के तहत गांव में काम करके जीविकोपार्जन करते थे। लेकिन अब काम न मिलने से वे सूरत, मेरठ और अन्य शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं। मजदूरों का कहना है – “सरकार चावल तो मुफ्त में दे रही है, लेकिन पेट भरने के अलावा घर के अन्य खर्च कैसे चलें? बच्चों की पढ़ाई, दवाइयां और दैनिक जरूरतों के लिए नकद पैसे चाहिए, पर काम नहीं है।”
ग्रामीणों का मानना है कि मनरेगा योजना कभी गांवों के लिए संजीवनी साबित होती थी, जिससे सालभर रोजगार की गारंटी मिलती थी। लेकिन अब डेढ़ साल से नए कार्य बंद होने के कारण मजदूरों की जिंदगी संकट में आ गई है। मजदूर परिवारों की मजबूरी इतनी बढ़ गई है कि बड़ी संख्या में लोग गांव छोड़कर बाहर मजदूरी करने निकल रहे हैं।
नई सरकार से ग्रामीणों को उम्मीद थी कि रोजगार गारंटी के तहत काम फिर से शुरू होंगे और उन्हें गांव में ही रोज़गार मिलेगा। लेकिन लंबे समय से कार्य बंद रहने से ग्रामीणों में निराशा गहराती जा रही है। अब मजदूरों ने सरकार से मांग की है कि मनरेगा के तहत तुरंत नए कार्यों की स्वीकृति दी जाए, ताकि पलायन पर रोक लग सके और गांव में ही मजदूरों का जीवनयापन संभव हो।