निमली (अलवर), राजस्थान, 27 फरवरी 2025 — रासायनिक प्रदूषण आज दुनिया के हर कोने में अपनी पहुँच बना चुका है — वायुमंडल की ऊँचाइयों से लेकर समुद्र की गहराइयों तक, मिट्टी, जल, जंगल और निर्जन क्षेत्रों तक। भारत के पर्यावरण की स्थिति 2025 (SOE 2025) रिपोर्ट, जिसे सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) और डाउन टू अर्थ पत्रिका ने वार्षिक अनिल अग्रवाल संवाद (AAD) में जारी किया, इस वैश्विक संकट को उजागर करती है।
रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 2019 के आँकड़ों के हवाले से बताया गया है कि रासायनिक प्रदूषण के कारण दुनियाभर में 2 मिलियन (20 लाख) मौतें हुईं और 53 मिलियन विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (DALY) खो गए।
रिपोर्ट को जारी करने के मौके पर भारत के G20 शेरपा अमिताभ कांत, योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, प्रबंधन और वित्तीय विशेषज्ञ राज लिब्रहान और CSE की महानिदेशक सुनीता नारायण उपस्थित रहे। इस संवाद में भारत भर से 80 से अधिक पत्रकार और 20 से अधिक विशेषज्ञ शामिल हुए, जिन्होंने देश के सामने मौजूद प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों पर चर्चा की।
हर जगह मौजूद है रासायनिक खतरा
“मानव निर्मित रसायन न केवल ‘हमेशा के लिए’ हैं, बल्कि अब ‘हर जगह’ प्रदूषक बन चुके हैं।" — SOE 2025 रिपोर्ट।
रिपोर्ट बताती है कि आज लगभग हर जगह — वायुमंडल, समुद्र, मिट्टी, पेड़-पौधे, यहाँ तक कि निर्जन क्षेत्रों तक — इन रसायनों की मौजूदगी है। डाउन टू अर्थ पत्रिका की वरिष्ठ संवाददाता रोहिणी कृष्णमूर्ति ने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि रसायनों के जोखिम और प्रभाव को पूरी तरह समझे बिना ही उन्हें बाजार में उतार दिया जाता है।
WHO के मुताबिक, दुनिया में लगभग 160 मिलियन रसायनों की जानकारी है, जिनमें से करीब 60,000 रसायनों का निर्माण, उपयोग और आयात किया जा रहा है — लेकिन ये रसायन अभी तक अच्छी तरह से समझे या विनियमित नहीं हैं।
SOE 2025 रिपोर्ट बताती है कि मानव जाति ने अब तक लगभग 1,40,000 रसायनों और उनके मिश्रणों का संश्लेषण किया है, जिनमें से कई कुछ दशक पहले तक अस्तित्व में भी नहीं थे। अमेरिका जैसे देश हर साल 1,500 नए रसायनों का निर्माण करते हैं।
रासायनिक उत्सर्जन के भयावह आँकड़े
रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 220 बिलियन टन रसायनों का उत्सर्जन होता है। इसमें हर सेकंड 65 किलोग्राम कैंसर पैदा करने वाले रसायन वायुमंडल में छोड़े जाते हैं।
इम्पैक्ट एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो डॉ. डोन्थी एन रेड्डी ने संवाद में कहा, “भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 255,000 टन कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि एक ग्राम भी घातक हो सकता है।”
मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव
SOE 2025 रिपोर्ट के अनुसार, सिंथेटिक रसायनों के संपर्क में आने से सबसे पहले फेफड़े, त्वचा और आंत प्रभावित होते हैं। ये रसायन रक्त प्रवाह के माध्यम से गुर्दे, यकृत, प्रतिरक्षा प्रणाली और अन्य अंगों तक पहुँचते हैं।
रसायनों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से:
कैंसर
अंगों को स्थायी क्षति
प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना
एलर्जी और अस्थमा
डीएनए को नुकसान और आनुवंशिक विकार
जैसी घातक बीमारियाँ हो सकती हैं।
भारत के लिए चेतावनी
SOE 2025 रिपोर्ट सवाल करती है कि क्या दुनिया रासायनिक प्रदूषण के एक गंभीर संकट में प्रवेश कर चुकी है। 2019 में रसायनों के कारण 2 मिलियन मौतें और 53 मिलियन विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (DALY) का नुकसान इस खतरे की भयावहता को दर्शाता है।
रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि भारत को रासायनिक प्रदूषण की इस चुनौती से निपटने के लिए:
रसायनों के उत्पादन और उपयोग को सख्त नियमों के दायरे में लाना होगा।
विषाक्त रसायनों के उत्सर्जन की निगरानी और नियंत्रण के लिए ठोस नीति अपनानी होगी।
ग्रामीण क्षेत्रों में कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग को रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाने होंगे।
स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छ तकनीकों को बढ़ावा देना होगा।
आगे की राह
SOE 2025 रिपोर्ट पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संकट के इस बढ़ते खतरे को लेकर स्पष्ट चेतावनी देती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि तत्काल सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो रासायनिक प्रदूषण एक वैश्विक महामारी का रूप ले सकता है।
CSE अगले कुछ दिनों में AAD चर्चाओं और SOE 2025 रिपोर्ट में सामने आई जानकारियों के आधार पर और भी प्रेस विज्ञप्तियाँ जारी करेगा। इस बीच, पर्यावरणविदों, नीति निर्माताओं और आम जनता को इस मुद्दे पर मिलकर समाधान तलाशने की आवश्यकता है।