मनेन्द्रगढ़: मनेन्द्रगढ़ वन मंडल में ई-कुबेर पोर्टल के जरिए बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता का मामला सामने आया है। खासतौर पर केल्हारी परिक्षेत्र इस घोटाले का केंद्र बनकर उभर रहा है, जहां भूमि जल संरक्षण के नाम पर भारी फर्जीवाड़ा किया गया है। बताया जा रहा है कि कागजों पर काम पूरा दिखाकर लाखों रुपये की राशि निकाल ली गई, जबकि ज़मीनी हकीकत कुछ और है।
ग्रामीणों के खातों से हो रही जबरन वसूली
केल्हारी के कछौड़, शिवपुर और बैरागी गांवों में भ्रष्टाचार का एक और चौंकाने वाला पहलू सामने आया है। स्थानीय ग्रामीणों के खातों में सरकारी योजना के तहत राशि डाली गई, लेकिन इसके बाद दबाव बनाकर वह राशि वापस ली जा रही है। मामले में बैंकों की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक, जब कुछ ग्रामीणों ने पैसे वापस देने से इनकार कर दिया तो मनेन्द्रगढ़ वन मंडल कार्यालय से उन्हें एफआईआर दर्ज करने की धमकी दी गई। यह मामला तब और गंभीर हो गया जब एक स्थानीय नेता ने इस पूरी बातचीत को रिकॉर्ड कर लिया। रिकॉर्डिंग में साफ सुना जा सकता है कि वन विभाग के अधिकारी ग्रामीणों से खाते में आई राशि में से 10% काटकर वापस करने को कह रहे हैं। इतना ही नहीं, उन्हें यह भी बताया गया कि भविष्य में इसी तरह की राशि उनके खातों में आती रहेगी, जिसे उन्हें इसी प्रक्रिया से लौटाना होगा।
सीसीएफ की चुप्पी, बढ़ता संदेह
इस घोटाले की जानकारी मुख्य वन संरक्षक (CCF) को होने के बावजूद अब तक किसी भी तरह की जांच शुरू नहीं की गई है। विभाग के इस मौन रवैये से मामले को दबाने की कोशिश की आशंका भी जताई जा रही है। स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि जब इतने बड़े स्तर पर वित्तीय गड़बड़ी के सबूत सामने आ चुके हैं, तो उच्च अधिकारियों की निष्क्रियता कई सवाल खड़े करती है।
क्या है ई-कुबेर पोर्टल?
ई-कुबेर एक डिजिटल भुगतान प्रणाली है, जिसके जरिए सरकारी विभाग सीधे लाभार्थियों के खातों में राशि ट्रांसफर करते हैं। यह व्यवस्था पारदर्शिता के लिए बनाई गई थी, लेकिन मनेन्द्रगढ़ वन मंडल में इसी सिस्टम का दुरुपयोग कर करोड़ों रुपये के हेरफेर की आशंका जताई जा रही है।
जनता में बढ़ता आक्रोश, कार्रवाई की मांग
इस घोटाले के खुलासे के बाद स्थानीय लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि भ्रष्टाचार के इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही, बैंकों की भूमिका की भी जांच की मांग की जा रही है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वन विभाग इस गंभीर मामले में कब तक अपनी चुप्पी तोड़ता है और भ्रष्टाचार के इस जाल में शामिल अधिकारियों के खिलाफ क्या कदम उठाए जाते हैं।