मुंबई: बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) में 1994 में एक कंपनी की लिस्टिंग में कथित वित्तीय धोखाधड़ी और नियामक उल्लंघनों के मामले ने तूल पकड़ लिया है। मुंबई की एक विशेष अदालत ने इस मामले में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की पूर्व अध्यक्ष माधबी पुरी बुच, तीन वर्तमान पूर्णकालिक निदेशकों और बीएसई के दो वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया है।
कौन-कौन हैं आरोपों के घेरे में?
विशेष न्यायाधीश शशिकांत एकनाथराव बांगर ने शनिवार को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB), वर्ली को FIR दर्ज करने का निर्देश दिया। आरोपियों में —
माधबी पुरी बुच: SEBI की पूर्व अध्यक्ष
अश्विनी भाटिया: SEBI के वर्तमान पूर्णकालिक निदेशक
अनंत नारायण जी: SEBI के वर्तमान पूर्णकालिक निदेशक
कमलेश चंद्र वार्ष्णेय: SEBI के वर्तमान पूर्णकालिक निदेशक
प्रमोद अग्रवाल: बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के अधिकारी
सुंदररामन राममूर्ति: बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के अधिकारी
क्या हैं आरोप?
यह मामला 1994 में BSE में एक कंपनी की लिस्टिंग से जुड़ी कथित अनियमितताओं से संबंधित है। शिकायतकर्ता, डोंबिवली के पत्रकार सपन श्रीवास्तव ने दावा किया कि यह लिस्टिंग SEBI अधिनियम, 1992, SEBI (ICDR) विनियम, 2018 और SEBI (LODR) विनियम, 2015 का पालन किए बिना की गई।
श्रीवास्तव ने आरोप लगाया कि SEBI और पुलिस को कई शिकायतें दी गईं, लेकिन किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने यह भी दावा किया कि सेबी के अधिकारी, जिनमें पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान निदेशक शामिल हैं, अपने नियामक कर्तव्यों को निभाने में विफल रहे, जिससे एक ऐसी कंपनी को लिस्टिंग की अनुमति दी गई जिसने आवश्यक अनुपालन मानकों को पूरा नहीं किया था।
शिकायत में बाजार में हेरफेर, अंदरूनी व्यापार (Insider Trading) और शेयर की कीमतों में कृत्रिम वृद्धि जैसे गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं। इन गतिविधियों को निवेशकों के साथ धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के उल्लंघन के रूप में चिह्नित किया गया है।
अदालत ने FIR के आदेश क्यों दिए?
अदालत ने कहा कि आरोपों से 'प्रथम दृष्टया' संज्ञेय अपराध का संकेत मिलता है। अदालत ने IPC, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, SEBI अधिनियम और अन्य लागू कानूनों के तहत FIR दर्ज करने के निर्देश दिए हैं। ACB को 30 दिनों के भीतर जांच की स्थिति रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।
सेबी ने क्या कहा?
SEBI ने इस आदेश को चुनौती देने की घोषणा की है। SEBI का कहना है कि आरोप लगाए गए अधिकारियों में से कई उस समय अपने संबंधित पदों पर नहीं थे। SEBI ने यह भी कहा कि अदालत ने बिना कोई नोटिस जारी किए और बिना SEBI को अपना पक्ष रखने का मौका दिए यह आदेश पारित किया है।
SEBI ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि शिकायतकर्ता ने इससे पहले भी कई याचिकाएं दायर की थीं, जिन्हें अदालत ने लागत के साथ खारिज किया था। विनियामक अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए SEBI ने कहा कि वह इस आदेश के खिलाफ उचित कानूनी कदम उठाएगी।
क्या होगा आगे?
अब सभी की नजरें SEBI की अपील और ACB की जांच रिपोर्ट पर टिकी हैं। यह देखना अहम होगा कि क्या इस मामले में नियामक संस्थाओं और BSE के वरिष्ठ अधिकारियों पर लगे आरोपों की पुष्टि होती है या SEBI इस कानूनी लड़ाई में खुद को निर्दोष साबित कर पाती है।