बिलासपुर 1 फरवरी। छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व (ATR) से भटककर मध्यप्रदेश के अमरकंटक और मरवाही क्षेत्र में घूम रही रेडियो कॉलर वाली टाइग्रेस को आखिरकार मध्यप्रदेश के संजय टाइगर रिजर्व में शिफ्ट कर दिया गया। वरिष्ठ वन्यजीव विशेषज्ञ प्राण चड्ढा ने इस पूरे घटनाक्रम पर छत्तीसगढ़ वन विभाग की देरी और निष्क्रियता पर सवाल उठाए हैं।
छत्तीसगढ़ में रेडियो कॉलर लगाया, लेकिन संभाल नहीं पाए
यह टाइग्रेस दिसंबर 2024 में अचानकमार टाइगर रिजर्व में छोड़ी गई थी, लेकिन कुछ ही दिनों में वह वहां से बाहर निकल गई। इसके बाद वह मध्यप्रदेश के अमरकंटक और छत्तीसगढ़ के मरवाही क्षेत्र में घूमती रही। वन विभाग ने उसे वापस लाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया, बल्कि उसके खुद लौटने का इंतजार करता रहा, जिससे समय और अवसर दोनों गंवा दिए गए।
पकड़ने में देरी का खामियाजा, अब मप्र की हो गई टाइग्रेस
प्राण चड्ढा के अनुसार, एक सप्ताह पहले जब यह टाइग्रेस अमरकंटक के जलेश्वर महादेव क्षेत्र में घूम रही थी, तब उन्होंने छत्तीसगढ़ के पीसीसीएफ (वाइल्डलाइफ) सुधीर अग्रवाल से संपर्क कर उसे पकड़ने का अनुरोध किया था। लेकिन वन विभाग ने यह कहकर निर्णय टाल दिया कि अगर उसे वापस ATR में लाया गया और वहां के बाघों से संघर्ष हुआ, तो समस्या खड़ी हो सकती है।
आखिरकार, मध्यप्रदेश वन विभाग ने सक्रियता दिखाई और बांधवगढ़ से हाथी मंगाकर डार्ट गन से बेहोश कर टाइग्रेस को संजय टाइगर रिजर्व में शिफ्ट कर दिया।
टाइगर वृद्धि अभियान को झटका
अचानकमार टाइगर रिजर्व से अब दो टाइग्रेसेस की कमी हो गई है, जिससे छत्तीसगढ़ के टाइगर वृद्धि अभियान को बड़ा झटका लगा है।
इसी तरह, बारनवापारा में आठ महीने से एक मेहमान टाइगर के लिए कोई टाइग्रेस नहीं लाई जा सकी। यह टाइगर कसडोल से 40 किमी दूर से रेस्क्यू कर अंततः गुरु घासीदास-तामोरपिंगला टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया।
छत्तीसगढ़ वन विभाग की निर्णय लेने में सुस्ती
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि छत्तीसगढ़ वन विभाग को भविष्य में महत्वपूर्ण फैसले तेजी से लेने होंगे। फैसले में देरी से वन्यजीवों का नुकसान ही होगा, जैसा कि इस टाइग्रेस के मामले में हुआ। अगर समय रहते कार्रवाई होती, तो यह टाइग्रेस आज भी छत्तीसगढ़ की होती।