रायपुर। तत्कालीन छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा भगवान श्रीराम के वन गमन मार्ग को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की बहुप्रतीक्षित योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। करोड़ों रुपये की कार्ययोजना के बावजूद बस्तर संभाग सहित कई महत्वपूर्ण स्थलों पर कोई ठोस विकास कार्य नहीं हुआ।
तत्कालीन कांग्रेस सरकार में परियोजना के तहत छत्तीसगढ़ में 22 स्थानों को राम वन गमन पर्यटन परिपथ में शामिल किया गया था। लेकिन हालात यह हैं कि इन स्थलों पर सिर्फ साइन बोर्ड लगाकर औपचारिकता निभा दी गई, जबकि भव्य झांकियों, राम कथाओं के चित्रण और आकर्षक प्रवेश द्वार जैसी योजनाएं केवल कागजों में सिमटकर रह गईं।
बस्तर के दंडकारण्य क्षेत्र, जिसे भगवान राम की कर्मस्थली माना जाता है, वहां की ऐतिहासिक धरोहरों को संजोने की योजना को भी अमलीजामा नहीं पहनाया गया। रायपुर के एक नामचीन दंपत्ति को इस प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन इन्होंने कोई ठोस कार्ययोजना तैयार नहीं की।
प्रदेश में केवल चंदखुरी और शिवरीनारायण में ही कुछ कार्य हुए, जबकि सौतामढ़ी हरचौरा, छतोड़ा, देवगढ़, विश्रामपुर, रामगढ़, मैनपाट, महेशपुर, किलकिला, गेरवानी, राम झरना, चंद्रपुर, राजिम, मधुबन, रुद्री, सिहावा, धनोरा, नारायणपुर, चित्रकोट, जगदलपुर, रामपाल, गीदम, कोटमसर, रामाराम और कोंटा जैसे ऐतिहासिक स्थलों को अनदेखा कर दिया गया।
भ्रष्टाचार और लापरवाही के चलते भगवान राम के वन गमन मार्ग को सहेजने की यह महत्वाकांक्षी योजना अधर में लटक गई है। अब सवाल उठता है कि आखिर करोड़ों की इस योजना का पैसा गया कहां?