निमली , राजस्थान 27 फरवरी। वर्ष 2024 को इतिहास में सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज किया गया है। भारत के पर्यावरण की स्थिति 2025 रिपोर्ट में बताया गया है कि 2024 पहला साल था, जब वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर (1850-1900) के औसत से 1.60 डिग्री सेल्सियस अधिक पहुंच गया। यह आंकड़े यूरोपीय संघ की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा द्वारा जारी किए गए हैं।
रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन अब सिर्फ एक भविष्य की चेतावनी नहीं है, बल्कि यह हमारे वर्तमान को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। 21वीं सदी की पहली पीढ़ी — जनरेशन अल्फा — को इस संकट का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट) की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक इस पीढ़ी की अनुमानित संख्या दो अरब होगी, जो इसे इतिहास की सबसे बड़ी पीढ़ी बना देगी। लेकिन यह पीढ़ी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित भी होगी।
चरम मौसम की घटनाओं में खतरनाक वृद्धि
सीएसई की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2024 में चरम मौसम की घटनाएं काफी बढ़ गईं। साल के पहले नौ महीनों में 274 में से 255 दिन देश ने बाढ़, लू, सूखा, भारी बारिश और बेमौसम तूफानों जैसी घटनाएं देखीं। 2023 में यह संख्या 235 थी, जबकि 2022 में 241 दिन।
सीएसई की पर्यावरण संसाधन कार्यक्रम निदेशक किरण पांडे ने कहा, “2024 को उस साल के रूप में याद किया जाएगा, जिसने जलवायु परिवर्तन के पहले और बाद के युग को विभाजित किया। इस साल ने हमें यह स्पष्ट संकेत दिया है कि अगर हम तुरंत ठोस कदम नहीं उठाते, तो आने वाले समय में हालात और खराब होंगे।”
वह आगे कहती हैं, "वैश्विक तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ, वायुमंडल में नमी का स्तर 7 प्रतिशत बढ़ जाता है। यह चरम मौसम की घटनाओं के मामले में एक ग्रहीय व्यवधान के लिए आदर्श स्थिति बनाता है।"
कृषि को भारी नुकसान
जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा असर भारत की कृषि पर पड़ा है। 2024 में 3.2 मिलियन हेक्टेयर फसल भूमि प्रभावित हुई, जो 2022 की तुलना में 74 प्रतिशत अधिक है। बेमौसम बारिश, लंबे सूखे और बाढ़ ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
मध्य प्रदेश के किसान रामप्रसाद वर्मा ने कहा, “साल 2024 में हमारी फसलें या तो तेज़ बारिश से बर्बाद हो गईं या लू के कारण सूख गईं। हमें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है, लेकिन मुआवजा बहुत कम मिला।”
पानी और प्रदूषण पर सख्त नीति की ज़रूरत
सीएसई की रिपोर्ट में सूरत और इंदौर जैसे शहरों के सफल नगरपालिका मॉडल को दोहराने की सिफारिश की गई है। वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ अहलूवालिया ने कहा, “हमें पानी के कुशल उपयोग और उचित मूल्य निर्धारण की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। या तो पानी की आपूर्ति को राशन किया जाए या उसकी सही कीमत तय की जाए।”
उन्होंने औद्योगिक प्रदूषण पर भी सख्त रुख अपनाने की बात कही। “प्रदूषण फैलाने वालों को कीमत चुकानी होगी, चाहे वे छोटे उद्योग हों या बड़े। प्रदूषण और अपशिष्ट जल के मामलों में किसी भी तरह की रियायत खतरनाक होगी।”
आने वाले वर्षों के लिए चेतावनी
सीएसई के आकलन के अनुसार, अगर सरकार और समाज ने जल्द सख्त कदम नहीं उठाए, तो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और भी गंभीर हो सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में भारत को कृषि, जल आपूर्ति, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव का सामना करना पड़ेगा।
सीएसई अगले कुछ दिनों में भारत के पर्यावरण की स्थिति 2025 रिपोर्ट के आधार पर और भी विस्तृत जानकारी साझा करेगा।