गोंडवाना मेरीन फॉसिल्स पार्क: करोड़ों वर्षों पुरानी धरोहर के संरक्षण पर सवाल, सौंदर्यीकरण के नाम पर वैज्ञानिक स्थल से खिलवाड़!

Chandrakant Pargir

 


मनेन्द्रगढ़। छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ वनमंडल अंतर्गत स्थित गोंडवाना मेरीन फॉसिल्स पार्क, जो वैज्ञानिक और भूगर्भीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, आज संरक्षण और सौंदर्यीकरण के नाम पर अनियमितताओं और लापरवाही का शिकार होता नजर आ रहा है। करोड़ों वर्ष पुराने जीवाश्मों के इस क्षेत्र में प्रशासनिक स्तर पर हुई गतिविधियों को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।


2024-25 में मिला 98.45 लाख का सौंदर्यीकरण बजट


वित्तीय वर्ष 2024-25 में पर्यावरण वानिकी योजना अंतर्गत फॉसिल्स पार्क के सौंदर्यीकरण के लिए 98.45 लाख रुपए प्रस्तावित किए गए, जिसमें से 41.99 लाख की राशि पहले चरण में स्वीकृत भी की गई। इस राशि से रेलिंग, कम्युनिटी टॉयलेट, सीसी रोड, ड्रेनेज, स्टोन कर्विंग, कैक्टस गार्डन आदि निर्माण कार्य प्रस्तावित किए गए।


नक्काशी के नाम पर पत्थरों से छेड़छाड़, मूल स्वरूप पर संकट


वन विभाग द्वारा सौंदर्यीकरण कार्य के दौरान डायनासोर व अन्य जीव-जंतुओं की आकृतियों की नक्काशी जीवाश्म क्षेत्र की चट्टानों पर ही करवा दी गई। जबकि यह चट्टानें अनुसंधान के लिए सुरक्षित मानी जाती हैं और इनमें और भी जीवाश्म होने की संभावना व्यक्त की जाती रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह की गतिविधियां नॉन-फॉरेस्ट्री एक्टिविटी की श्रेणी में आती हैं और वन संरक्षण अधिनियम के तहत अवैध मानी जाती हैं।


क्या 2017 में भी हुआ कुछ ऐसा ही?66 लाख की राशि रह गई रहस्य!


गौर करने वाली बात यह भी है कि वर्ष 2017 में भी जिला खनिज संस्थान न्यास (DMF) से नगर पालिका मनेन्द्रगढ़ को 66 लाख रुपए की राशि मेरीन फॉसिल्स पार्क के संरक्षण एवं ऊर्जा-व जल विभाजक के लिए दी गई थी। हालांकि, आज तक यह स्पष्ट नहीं है कि उस समय इन पैसों का उपयोग कहां और कैसे किया गया। कोई शिलालेख, कार्यविवरण या उपलब्ध जानकारी सामने नहीं है। ऐसे में 2017 की राशि का उपयोग और 2024-25 के त्वरित खर्च पर अनेक सवाल उठ रहे हैं। कहीं यह धनराशि सिर्फ कागजों पर ही तो खर्च नहीं हुई?


कब होगी इस ऐतिहासिक धरोहर की ‘वास्तविक’ सुर्खियों में वापसी?


मीडिया में  कई बार प्रमुखता से स्थान पाने वाले गोंडवाना मेरीन फॉसिल्स पार्क को अभी तक सही मायनों में संरक्षण नहीं मिल पाया है। यह दुर्लभ वैज्ञानिक धरोहर, जो करोड़ों वर्षों पूर्व के समुद्री जीवन का दस्तावेज है, उसके साथ इस तरह की छेड़छाड़ न केवल शोध की संभावनाओं को खत्म कर सकती है, बल्कि छत्तीसगढ़ की भूगर्भीय पहचान को भी खतरे में डाल सकती है।

आज यह प्रश्न सबसे महत्वपूर्ण बन गया है कि इतनी बार बजट मिलने के बाद भी यह अमूल्य धरोहर आखिर कब 'वास्तविक संरक्षण' और 'ईमानदार सुर्खियों' में आएगी?





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