6 साल से दबा हुआ है कोरिया में हुआ करोड़ों का रॉयल्टी घोटाला, 24 विभागों में से 22 ने नहीं दी जानकारी, कलेक्टर सत्यनारायण राठौर के कार्यकाल में घोटाले की जांच नहीं, आरटीआई से खुलासा

Chandrakant Pargir


कोरिया 9 जून। कोरिया जिले में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान करोड़ों रुपये का रॉयल्टी घोटाला सामने आने के बाद भी तत्कालीन कलेक्टर सत्यनारायण राठौर द्वारा आज तक किसी भी तरह की जांच शुरू नहीं की गई। सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी से खुलासा हुआ है कि इस गंभीर आर्थिक घोटाले में 24 विभागों को जानकारी देने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन केवल दो विभागों ने ही जवाब दिया, जबकि 22 विभागों ने पूरी तरह से चुप्पी साध ली।


जानकारी के अनुसार, वर्ष 2020 में जिले में कई ठेकेदारों ने फर्जी रॉयल्टी चुकता प्रमाण पत्र पेश कर निर्माण एजेंसियों से करोड़ों रुपये की बकाया राशि हासिल की। इस धोखाधड़ी से शासन को भारी आर्थिक नुकसान हुआ, लेकिन तब कलेक्टर कार्यालय ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।


सितंबर 2020 में मामला सार्वजनिक हुआ था। 8 अक्टूबर 2020 को तत्कालीन कलेक्टर ने 24 कार्यालय प्रमुखों को पत्र जारी कर जनवरी 2018 से अब तक किए गए निर्माण कार्यों में प्रयुक्त गौण खनिजों की रॉयल्टी चुकता प्रमाण पत्र की प्रतियां एवं संबंधित विवरण मांगे थे। लेकिन अधिकांश विभागों ने न तो समय पर जानकारी दी और न ही कोई जवाबदेही तय की गई।


कैसे हुआ घोटाला?


सरकारी निर्माण कार्यों में ठेकेदारों की कुछ राशि निर्माण एजेंसी के पास तब तक रोक कर रखी जाती है जब तक वे खनिज विभाग से रॉयल्टी चुकता प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं कर देते। लेकिन इस प्रक्रिया में गड़बड़ी करते हुए फर्जी प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर बिना वैध रॉयल्टी जमा किए ही भुगतान करा लिया गया। बताया जा रहा है कि यह घोटाला मुख्य रूप से नगर निगम चिरमिरी से शुरू हुआ और धीरे-धीरे अन्य विभागों तक फैल गया।


सिर्फ दो विभागों ने दी जानकारी, बाकी चुप


RTI से प्राप्त जानकारी के अनुसार केवल राजीव गांधी शिक्षा मिशन और जल संसाधन विभाग ने कलेक्टर को जानकारी दी। बाकी 22 विभागों ने न तो कोई विवरण प्रस्तुत किया, न ही प्रशासन ने उन्हें पुनः निर्देशित किया। इससे स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी से करोड़ों का घोटाला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।


क्या कहता है तब का आदेश?


तत्कालीन कलेक्टर के आदेश में स्पष्ट लिखा गया था कि अंतिम भुगतान से पूर्व रॉयल्टी प्रमाण पत्र का सत्यापन अनिवार्य है। साथ ही यदि बिना सत्यापन के भुगतान किया गया हो, तो संबंधित विभागीय अधिकारी की पूरी जिम्मेदारी होगी। फिर भी, किसी भी स्तर पर कोई जांच शुरू नहीं की गई।


6 साल से दबा हुआ है मामला


तब की जिला खनिज अधिकारी त्रिवेणी देवांगन ने भी स्वीकार किया है कि इस मामले में अब तक न तो कोई जांच शुरू हुई है, न ही कोई प्रतिवेदन तैयार किया गया है। कांग्रेस के समय हुई इस रॉयल्टी घोटाले की फ़ाइल बीते 6 साल से दबी हुई है बताया जाता है फर्जी चुकता प्रमाण पत्र बनाने वाला इसका मास्टर माइंड तब से फरार बताया जा रहा है। वही मामले में अब तक कोई कार्यवाही नही हो सकी है।




 

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