कोरिया। जिला मुख्यालय बैकुंठपुर से दूर, बीहड़ और पथरीले रास्तों के पार बसे मझगवां खुर्द गांव में परेशानियों का अंबार है। महज 22 घरों वाला यह गांव आजादी के इतने वर्षों बाद भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। यहां पहुंचना किसी चुनौती से कम नहीं, कच्चे और पथरीले रास्तों के सहारे ही लोग आवाजाही करने को मजबूर हैं। इनसाइड स्टोरी की टीम मोटरसाइकिल के सहारे यहां पहुंची।
ग्रामीणों की सबसे बड़ी मांग है पक्की सड़क। सड़क न होने से बीमार को अस्पताल पहुंचाना हो या बच्चों को स्कूल, हर रोज का सफर संघर्ष बन चुका है। सोनहत आने जाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
ढाई साल से टावर बन्द
स्थिति यह है कि गांव में लगे बीएसएनएल का मोबाइल टावर भी बीते दो वर्षों से बंद पड़ा है, जिससे लोगों को संचार सुविधा तक मयस्सर नहीं हो पा रही।
जाति और निवास प्रमाण पत्र बनवाने की प्रक्रिया भी अधूरी है। कुछ ग्रामीणों के प्रमाण पत्र तो बन गए हैं, लेकिन बाकी लोग आज भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को विवश हैं।
हालांकि इस गांव की एक सकारात्मक तस्वीर भी सामने आती है—यहां एक आंगनबाड़ी, प्राथमिक और मिडिल स्कूल जरूर संचालित हो रहे हैं, जो शिक्षा की लौ को जलाए हुए हैं।
सबसे गंभीर समस्या है पानी की। गांव में बनाए गए दो तालाब पूरी तरह सूख चुके हैं। गर्मी में पानी की तलाश में लोगों को दूर-दूर तक भटकना पड़ता है। ग्रामीणों की मांग है कि पास बहने वाली गोपद नदी पर एक छोटा स्टॉप डेम बनाया जाए ताकि सिंचाई और पीने के पानी की समस्या दूर हो सके और वे खेती कर अपना जीवनयापन कर सकें।
सरकार और प्रशासन से ग्रामीणों की मांग है कि मझगवां खुर्द को भी विकास की मुख्यधारा से जोड़ा जाए, ताकि गांव के लोग भी सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।