कोरिया 3 मई। प्रदेश सरकार द्वारा जन समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए चलाए जा रहे सुशासन त्यौहार की कार्यप्रणाली अब सवालों के घेरे में आ गई है। जिले में प्राप्त आवेदनों और शिकायतों का मनमाफिक निराकरण कर, उन्हें 'निराकृत' घोषित किया जा रहा है। आरोप है कि गंभीर समस्याओं को नजरअंदाज कर, कुछ सतही मामलों का समाधान कर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है ताकि आंकड़ों में जिले को अव्वल दिखाया जा सके।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं से जुड़े कई गंभीर मामलों पर सिर्फ जांच समिति गठित कर ली गई है, लेकिन न तो जांच की कोई समय-सीमा तय की गई है और न ही आवेदकों को ठोस जानकारी दी जा रही है। उन्हें सिर्फ इतना कह कर टाल दिया जाता है कि "जांच पूरी होने पर अवगत कराया जाएगा।"
कुछ मामूली आवेदनों को प्राथमिकता देकर उनका समाधान तो किया गया, लेकिन व्यापक प्रचार कर यह दर्शाने की कोशिश की गई कि सभी समस्याओं का समाधान हो चुका है। सोशल मीडिया और सरकारी प्लेटफॉर्म्स पर इन मामलों को उछालकर जनमानस में सफलता का संदेश देने की कोशिश की गई।
मांग कुछ, जवाब कुछ
चिरगुड़ा के एक ग्रामीण ने सुशासन त्यौहार में उच्च स्तरीय पानी टंकी से मुख्य बस्ती में जल आपूर्ति की मांग की थी। इसके जवाब में लिखा गया कि "आवेदक के घर से 150 मीटर की दूरी पर हैंडपंप स्थापित और चालू है, अतः विभागीय मापदंडों के अनुसार हैंडपंप की आवश्यकता नहीं है।" जबकि मांग का इससे कोई लेना-देना नहीं था। यह सिर्फ एक उदाहरण है, ऐसे सैकड़ों मामले सामने आए हैं जिनमें मांगों से इतर जवाब देकर उन्हें 'निराकृत' दिखा दिया गया।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि सुशासन त्यौहार की मंशा तो अच्छी थी, लेकिन इसके क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही की भारी कमी रही। कई आवेदक खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। यदि प्रशासन के अलग अलग विभाग इसी तरह से लीपापोती करता रहा, तो आम जनता का विश्वास इस पहल से उठ सकता है।
जनहित से जुड़े मुद्दों पर प्रशासन की चुप्पी और आंकड़ों की बाजीगरी कई सवाल खड़े कर रही है। अब देखना होगा कि इन आरोपों पर प्रशासन क्या जवाब देता है।