बालोद। पूरे देश में जहां नवरात्रि के अवसर पर देवी शक्ति की उपासना की जा रही है, वहीं छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक अनूठी परंपरा देखने को मिलती है। यहां स्थित कुकुरदेव मंदिर में एक कुत्ते की वफादारी की पूजा की जाती है। यह मंदिर नागवंशी काल से जुड़ा हुआ माना जाता है और इसकी ऐतिहासिक व धार्मिक मान्यता लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई है।
कुत्ते की ईमानदारी की पूजा
इस मंदिर की स्थापना फणी राजवंश के दौरान की गई थी। मान्यता है कि इस स्थल पर एक वफादार कुत्ते को दफनाया गया था, जिसने अपनी निष्ठा से अपने मालिक की रक्षा की थी। उसकी इसी वफादारी के सम्मान में यहां स्मारक बनाया गया, जो बाद में मंदिर का रूप ले लिया। आज यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि इसकी अनूठी परंपरा इसे देशभर में प्रसिद्ध बनाती है।
नवरात्रि में विशेष पूजा-अर्चना
नवरात्रि के अवसर पर कुकुरदेव मंदिर में आस्था के 95 ज्योति कलश जलाए गए हैं। श्रद्धालु यहां विशेष पूजा-अर्चना कर अपनी श्रद्धा प्रकट कर रहे हैं। शिव महापुराण की कथा का पाठ किया जा रहा है और बड़ी संख्या में भक्त यहां दीप प्रज्वलित कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना कर रहे हैं।
कुत्ते की वफादारी से जुड़ी कहानी
पुरातत्व विभाग के कर्मचारी महेश राम साहू के अनुसार, सदियों पहले एक बंजारा अपने परिवार के साथ इस गांव में आया था। उसके साथ एक वफादार कुत्ता भी था। एक बार जब गांव में अकाल पड़ा, तो बंजारे ने गांव के साहूकार से कर्ज लिया, जिसे वह चुकाने में असमर्थ था। इस पर उसने अपना कुत्ता साहूकार के पास गिरवी रख दिया।
कुछ समय बाद, साहूकार के घर चोरी हो गई, लेकिन चोरों का पता लगाने में कुत्ते ने मदद की। चोरी का माल जमीन में गड़ा था, जिसे कुत्ते ने साहूकार तक पहुंचा दिया। साहूकार कुत्ते की वफादारी से इतना प्रभावित हुआ कि उसने बंजारे के नाम एक चिट्ठी लिखकर उसे आजाद कर दिया। कुत्ते ने वह चिट्ठी लेकर अपने मालिक के पास लौटने की कोशिश की, लेकिन बंजारे ने यह सोचा कि वह भागकर आया है और गुस्से में आकर उसे पीट-पीटकर मार डाला। जब बाद में बंजारे को सच्चाई का पता चला, तो वह पछताया और उसने उस वफादार कुत्ते के सम्मान में इस स्थल पर स्मारक बनवा दिया, जो आज कुकुरदेव मंदिर के रूप में पूजनीय है।
मान्यता और विश्वास
स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मंदिर में पूजा करने से कुत्ते के काटने से होने वाली बीमारियों का उपचार होता है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और आस्था के दीप जलाते हैं। महाशिवरात्रि और दोनों नवरात्रों में इस मंदिर में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, जिससे यह स्थान आस्था और परंपरा का अनूठा संगम बन गया है।
यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि कुत्ते की वफादारी और निष्ठा की अद्भुत मिसाल भी पेश करता है।