एमसीबी 6 मार्च । मनेन्द्रगढ़ वन मंडल के डीएफओ द्वारा चलाई जा रही "महुआ बचाओ अभियान" नामक योजना अब सवालों के घेरे में आ गई है। यह योजना शासन की नहीं है, बल्कि इसे डीएफओ ने खुद शुरू किया है और अब वे इसकी जमकर वाहवाही लूट रहे हैं।
महुआ संरक्षण की क्या जरूरत?
कोरिया, सरगुजा और मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (एमसीबी) जिले में महुआ के पेड़ इतनी अधिक संख्या में हैं कि उनकी गिनती तक संभव नहीं है। यहां के 90% ग्रामीण महुआ बीनकर उसे बेचते हैं, जिससे उनकी आजीविका चलती है। महुआ के कारण जंगलों में आग लगने की समस्या जरूर सामने आती है, क्योंकि लोग महुआ बीनने के लिए पेड़ के आसपास आग लगाकर सफाई करते हैं, जिससे आग फैल जाती है। लेकिन इस समस्या का समाधान जागरूकता और सही व्यवस्था से हो सकता है, न कि एक दिखावटी अभियान से।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि महुआ का पेड़ वैसे भी नहीं काटा जाता, फिर इसका संरक्षण क्यों? ग्रामीण खुद ही इसकी देखभाल करते हैं, क्योंकि यह उनकी आय का प्रमुख स्रोत है। ऐसे में डीएफओ द्वारा इस अभियान को चलाना केवल वाहवाही लूटने और फंड खर्च करने का जरिया बनता दिख रहा है।
दुर्लभ और विलुप्त होते पेड़ों पर ध्यान क्यों नहीं?
मनेंद्रगढ़ वन मंडल में कई ऐसे वृक्ष हैं, जो तेजी से विलुप्त हो रहे हैं, लेकिन वन विभाग को उनकी चिंता नहीं है। बीजा, टिंसा, हल्दू, सीसम और साल जैसी इमारती लकड़ी देने वाली प्रजातियां तेजी से खत्म हो रही हैं। इन पेड़ों की अत्यधिक कटाई हो रही है, लेकिन इनके पुनर्रोपण पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
एमसीबी जिले में सबसे ज्यादा साल के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, लेकिन वन विभाग गहरी नींद में है। वहीं, चार, आंवला, हर्रा, बहेरा और करौंदा जैसे फलदार वृक्ष भी तेजी से घट रहे हैं। ये न केवल औषधीय और पोषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि जंगल में रहने वाले वन्यजीवों का भी भोजन हैं। जब ये पेड़ नहीं बचेंगे, तो वन्यजीव मजबूर होकर बस्तियों और शहरों की ओर बढ़ेंगे, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ेंगी।
शासन की योजना नहीं, फिर फंड कहां से आ रहा?
सूचना के अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, महुआ बचाओ अभियान कोई सरकारी योजना नहीं है। इसका मतलब है कि सरकारी फंड से इसके लिए कोई राशि स्वीकृत नहीं हुई।
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि फिर इस अभियान में पैसा कहां से और किस मद से खर्च किया जा रहा है? क्या यह किसी अन्य योजना की राशि को गलत तरीके से उपयोग करने का मामला है? इसकी गहराई से जांच जरूरी है।
महुआ बचाने की नहीं, जंगल बचाने की जरूरत!
वन विभाग को महुआ के नाम पर दिखावटी अभियान चलाने के बजाय, वास्तव में संकटग्रस्त और विलुप्त होती प्रजातियों पर ध्यान देना चाहिए। साल, बीजा, टिंसा, हल्दू और सीसम जैसे पेड़ों का संरक्षण ज्यादा जरूरी है, क्योंकि महुआ के पेड़ तो ग्रामीण खुद बचा रहे हैं, लेकिन इन बहुमूल्य प्रजातियों का जिम्मा कौन लेगा?
वन विभाग को वास्तविक समस्याओं पर ध्यान देकर, जंगलों को बचाने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए, न कि वाहवाही लूटने के लिए बिना जरूरत के अभियान चलाने चाहिए।
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