संस्कारों का ह्रास: परिवार के टूटते रिश्ते और बढ़ता अपराध , एक चिंतनीय सामाजिक परिदृश्य

Chandrakant Pargir

 


चन्द्रकान्त पारगीर


समाज में नैतिक पतन और पारिवारिक मूल्यों की गिरावट ने हमें उस भयावह स्थिति में ला खड़ा किया है, जहां खून के रिश्ते भी कलंकित हो रहे हैं। हाल ही में कोरिया जिले में घटी घटना, जिसमें एक पत्नी और बेटी ने मिलकर अपने ही पति और पिता की हत्या की साजिश रची, यह महज एक अपराध नहीं, बल्कि समाज के गिरते नैतिक मूल्यों का संकेत है। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर हम अपनी अगली पीढ़ी को किस दिशा में ले जा रहे हैं?


परिवार में बढ़ती कटुता और नई पीढ़ी की अज्ञानता


आज की पीढ़ी सुख-सुविधाओं में पली-बढ़ी है, लेकिन पारिवारिक संस्कारों से वंचित होती जा रही है। माता-पिता बच्चों को अच्छी शिक्षा और भौतिक संसाधन तो देते हैं, लेकिन नैतिकता और जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाने में असफल हो रहे हैं। इस विडंबना का परिणाम यह हुआ कि बच्चे अनुशासन को बंधन और माता-पिता की डांट को दुश्मनी समझने लगे हैं।

कोरिया की इस घटना में भी यही हुआ। एक पिता, जिसने अपनी बेटी को पाल-पोसकर बड़ा किया, उसी बेटी ने अपनी मां के साथ मिलकर उसे मरवा दिया। यह कोई साधारण अपराध नहीं, बल्कि समाज के विघटन और संस्कारों के क्षरण का एक क्रूर उदाहरण है।


संस्कारों की कमी: अपराध की बढ़ती जड़ें


बच्चों में नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों की कमी का एक प्रमुख कारण आधुनिक जीवनशैली और डिजिटल दुनिया का अत्यधिक प्रभाव है। आज बच्चों के लिए पारंपरिक शिक्षा और संस्कार गौण हो गए हैं, जबकि सोशल मीडिया, वेब सीरीज और इंटरनेट उनका नया शिक्षक बन गया है। ऐसे प्लेटफार्मों पर हिंसा, द्वेष और विद्रोह को महिमामंडित किया जाता है, जिससे बच्चों के भीतर नकारात्मकता बढ़ रही है।

टीवी और वेब सीरीज में दिखाए जाने वाले षड्यंत्र, विश्वासघात और पारिवारिक विघटन को देखकर आज की युवा पीढ़ी यह मानने लगी है कि रिश्ते मात्र औपचारिकताएँ हैं, जिन्हें स्वार्थ के लिए तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है। यही कारण है कि पारिवारिक ताने-बाने की नींव कमजोर होती जा रही है और अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है।


माता-पिता को बदलनी होगी अपनी भूमिका


आज के माता-पिता को परिवार के "मालिक" नहीं, बल्कि "माली" बनने की जरूरत है। उन्हें अपने बच्चों के साथ संवाद स्थापित करना होगा, उनकी भावनाओं और मनोदशा को समझना होगा। यदि माता-पिता अपने बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करें और उनके मन में उठ रहे प्रश्नों के उत्तर स्वयं दें, तो वे बाहरी प्रभावों से बच सकते हैं।

बच्चों में नैतिकता, सहानुभूति और रिश्तों की अहमियत का संचार करने की जिम्मेदारी केवल स्कूलों की नहीं, बल्कि माता-पिता की भी है। बच्चों को बचपन से ही यह सिखाना होगा कि हर कठिनाई का समाधान हिंसा या विद्रोह नहीं, बल्कि संयम और संवाद में निहित है।


समाज को जागरूक करने की जरूरत


यदि समाज संस्कारों के पुनरुद्धार के लिए आगे नहीं आया, तो ऐसे अपराधों की संख्या और बढ़ेगी। हमें यह समझना होगा कि भले ही हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन संस्कारों की जड़ें अगर कमजोर हो जाएं, तो पूरा समाज चरमरा जाएगा।

समाज, परिवार और प्रशासन को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। स्कूलों में नैतिक शिक्षा को पुनर्जीवित करना होगा, परिवारों में संवाद को बढ़ावा देना होगा और मीडिया को भी अपनी भूमिका को लेकर आत्ममंथन करना होगा।

यदि हम आज सचेत नहीं हुए, तो कल का समाज ऐसा होगा, जहां रिश्तों की कोई कीमत नहीं होगी, और तब हम पछताने के सिवाय कुछ नहीं कर पाएंगे। इसीलिए, समय रहते हमें जागना होगा और संस्कारों की पुनर्स्थापना करनी होगी।




#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!