महुआ बचाओ योजना में समितियों के लाभांश का मनमाफिक उपयोग: जिसने मना किया, वहीं नहीं लगा महुआ

Chandrakant Pargir

 


मनेन्द्रगढ़ (एमसीबी)। 

मनेन्द्रगढ़ वन मंडल में डीएफओ द्वारा शुरू की गई "महुआ बचाओ" योजना में अब तक कई सवाल खड़े हो चुके हैं। वन प्रबंधन समितियों के खातों में जमा लाभांश की राशि का मनमाफिक उपयोग करते हुए आरोप लगे हैं कि योजना में पारदर्शिता का अभाव है। जहां कुछ समितियों के अध्यक्षों ने साफ इनकार कर दिया, वहीं अन्य ने भोलेभाले चेक पर हस्ताक्षर कर राशि निकाल ली। इस अनियमितता का असर सीधा उनके संबंधित क्षेत्रों पर पड़ा, क्योंकि जिन समितियों ने धन निकालने से मना कर दिया, वहीं उनके क्षेत्रों में महुआ के पौधे नहीं लगाए गए।



संदिग्ध कार्रवाई और मनमाफिक राशि निकासी


डीएफओ के निर्देशानुसार मनेन्द्रगढ़ वन मंडल के परिक्षेत्र ले अधिकारियों ने समितियों के खातों में जमा लाभांश की राशि को महुआ बचाओ योजना में लगाने के लिए दबाव बनाया। ऐसे में भोलेभाले अध्यक्ष बिना किसी आपत्ति के चेक पर हस्ताक्षर कर राशि निकाल लेते थे। लेकिन कुछ समझदार अध्यक्षों ने इस खेल की गहराई समझते हुए राशि जारी करने से साफ इंकार कर दिया। इन अधिकारियों पर इन इनकारों के बाद दबाव बढ़ा, जिससे हटाने की जोरआजमाइश की गई। यदि समिति के अध्यक्ष हट जाते हैं, तो उनके क्षेत्र में महुआ के पौधे लगाने से भी इनकार कर दिया गया।


कूप लाभांश पर भी डीएफओ की नजर


परिक्षेत्रों में जहाँ कूप काटा गया है, वहाँ जमा लाभांश की राशि का भी अब डीएफओ द्वारा अनुचित उपयोग करने का प्रयास किया जा रहा है। जिन समितियों से पहले ही राशि निकाल ली गई है, उनके खिलाफ अब मुखर हो रहे हैं। इस बाबत शिकायतें और शिकवे उठ रहे हैं, जिससे स्पष्ट है कि योजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता एवं न्याय सुनिश्चित नहीं किया गया।


वन प्रबंधन समितियों का महत्व

वन प्रबंधन समितियां वनों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनके माध्यम से:

वन संसाधनों का संरक्षण:

 स्थानीय समुदायों को वनों पर निर्भरता कम करने और अतिरिक्त आय के साधन प्रदान करने के लिए विभिन्न उपक्रम चलाए जाते हैं। जैविक खाद उत्पादन: वनों के विकास के साथ-साथ जैविक खाद उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जाता है, जिससे कृषि और वन दोनों क्षेत्रों में संतुलन बना रहे। इन समितियों की भूमिका वन संसाधनों के प्रबंधन में पारदर्शिता, जवाबदेही और स्थानीय भागीदारी सुनिश्चित करने में अत्यंत आवश्यक है।



संयुक्त वन प्रबंधन समितियां और कार्यक्रम

वन में पौधारोपण की योजना: वे वन में लगाए जाने वाले पौधों की प्रजातियों का चयन करने, भौतिक और वित्तीय लक्ष्य सुझाने तथा जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने का काम करती हैं।


स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति: 

संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम, आस-पास के सरकारी वनों से स्थानीय लोगों की वानिकी संबंधी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने का एक प्रयास है। इनकी शुरुआत 1988 में ओडिशा में हुई थी और तब से ही इनकी महत्वपूर्ण भूमिका स्थापित हो चुकी है।


महुआ बचाओ योजना में समितियों के लाभांश का मनमाफिक उपयोग और समिति अध्यक्षों द्वारा साफ इनकार से यह स्पष्ट हो गया है कि वन संसाधनों के प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता है। प्रशासन से अपील की जाती है कि वह इस मामले की गहन जांच करें, दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाएं और वन प्रबंधन समितियों के महत्व को ध्यान में रखते हुए भविष्य में पारदर्शिता एवं न्याय सुनिश्चित करें। इससे न केवल वन संरक्षण की दिशा में सकारात्मक बदलाव आएंगे, बल्कि स्थानीय समुदायों का विश्वास भी पुनः स्थापित होगा।

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