सड़क चौड़ीकरण का प्रस्ताव रायपुर में पेंडिंग, 15 वर्षों से सिर्फ नापजोख सोशल मीडिया पर सड़क चौड़ीकरण को लेकर बहस जारी

Chandrakant Pargir

 


बैकुंठपुर (कोरिया), 9 जनवरी। कोरिया जिले में बहुप्रतीक्षित सड़क चौड़ीकरण का प्रस्ताव राजधानी रायपुर में वर्षों से लंबित है। सड़क की नापजोख के बाद नए सिरे से प्रस्ताव को भेजे छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इस मुद्दे ने सोशल मीडिया पर जोर पकड़ लिया है, जहां लोग चौड़ीकरण की मांग को लेकर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं।


कलेक्टर श्रीमती चंदन त्रिपाठी ने बताया कि प्रस्ताव रायपुर में है, और स्वीकृति मिलते ही सभी संबंधित पक्षों से चर्चा कर कार्य प्रारंभ किया जाएगा।


राजनीतिक पहल और अनसुलझा मुद्दा


बीते वर्ष जनवरी 24 को झुमका महोत्सव के दौरान मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सड़क चौड़ीकरण के मुद्दे पर सकारात्मक रुख दिखाया था। हालांकि, एक वर्ष बीत जाने के बावजूद सरकार से कोई स्वीकृति नहीं मिल पाई है।


यातायात का दबाव और जाम की समस्या


एनएच 43, जो बैकुंठपुर के मध्य से गुजरती है, पर रोजाना जाम की समस्या आम हो गई है। यात्री बसों और भारी वाहनों की आवाजाही के कारण शहर के मुख्य मार्ग पर अक्सर ट्रैफिक जाम हो जाता है। त्योहारों, साप्ताहिक बाजार, या प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान यह समस्या और गंभीर हो जाती है।


नापजोख और गणना का लंबा इतिहास


खंभों और पेड़ों की गणना

तत्कालीन कलेक्टर श्याम धावड़े के कार्यकाल में पेड़ों और खंभों की गणना की गई थी। भांड़ी से जमगहना और खरवत से ओड़गी तक पेड़ों की मोटाई और संख्या का रिकॉर्ड तैयार किया गया।


मकानों और दुकानों की सूची

सड़क चौड़ीकरण के दायरे में आने वाले मकानों और दुकानों की गणना की गई। शहर के बाहर 80 फीट और अंदर 60 फीट चौड़ाई तक नापजोख की गई थी।


अतिक्रमण अभियान और अधूरी योजनाएं


2006 में तत्कालीन कलेक्टर शहला निगार ने अतिक्रमण हटाने की मुहिम शुरू की थी। बाद में कलेक्टर ऋतु सैन ने सड़क नापजोख करवाई, लेकिन योजना पर अमल नहीं हो सका। कांग्रेस शासनकाल में भी सड़क चौड़ीकरण की बात हुई, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।


जनता की मांग और प्रशासन की जिम्मेदारी


बढ़ते यातायात दबाव और भविष्य की जरूरतों को देखते हुए एनएच 43 का चौड़ीकरण बेहद जरूरी है। इससे जाम की समस्या का समाधान होगा और शहर के नागरिकों को राहत मिलेगी। अब देखना यह है कि सरकार और प्रशासन कब तक इस मांग को पूरा कर पाते हैं।



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