बैकुंठपुर (कोरिया) 26 नवंबर। कसडोल मे पकड़े बाघ को कॉलर आईडी लगाकर गुरु घासीदास तमोर पिगला टाइगर रिजर्व लाया गया, अल सुबह से पार्क के अधिकारी कर्मचारी मीडिया से नज़र बचाते हुए रामगढ़ पहुंचे औऱ बाघ को जंगल मे छोड़ा गया। जैसे ही वो गाड़ी से उतरा और जंगल मे खो गया।
पढिये -
प्रसिद्ध फोटोग्राफर सत्यप्रकाश पांडेय का पोस्ट
उम्मीदों का टूट जाना ...
................................
कल (मंगलवार 26 नवम्बर) मेरी दो उम्मीदें एक साथ टूटीं, पहली उम्मीद बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी में बाघ का घरौंदा एक बार फिर बस जाने की और दूसरी छत्तीसगढ़ में पहली बार बाघ को कैमरे में समेट लाने की। मेरी दोनों उम्मीदों की उम्र महज़ नौ माह थी, वैसे तो इतने महीनों में इंसान माँ की कोख से जन्म ले लेता है मगर इन नौ महीनों में छत्तीसगढ़ सरकार और वन विभाग अदद एक बाघिन का इंतज़ाम करने का केवल शोर मचाता रह गया। नतीज़ा वो बाघ कल कसडोल शहर के आबादी वाले इलाके में भटकता हुआ पहुँचा और पकड़ा गया। बाघ के पकड़े जाते ही उन संभावनाओं का अंत हो गया जो 'बार' को शायद नई पहचान दे सकती थी, कल किसी की जिम्मेदारियां ख़त्म हो गई तो कोई नई जिम्मेदारी को पिंजरे में कैद कर हजारों की भीड़ के बीच से अपने साथ ले गया।
दरअसल टूटी उम्मीदों की दास्ताँ उस बाघ की है जो मार्च 2024 में पहली बार छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के सिरपुर क्षेत्र में अचानकपुर मार्ग पर दिखा। बाघ सड़क पार कर जंगल की ओर जा रहा था। इसी दौरान वहां से गुजर रहे एक राहगीर ने वीडियो बना लिया। वीडियो वायरल हुआ, वन महकमा हरकत में आया। बाघ कहाँ से और किस रास्ते आया, किसी को ख़बर नहीं थी। संभावना व्यक्त की गई कि बाघ पड़ोसी राज्य उड़ीसा से पलायन करके छत्तीसगढ़ में आया है। बाघ की बेबाक़ी, बिंदास अंदाज को देख सहज अंदाजा लगाया जाता रहा कि वो किसी टाईगर रिजर्व का होगा क्यूंकि उसे मानव की मौजूदगी से ख़ास परहेज नहीं था। प्रवासी युवा बाघ की हरकतें इस बात का प्रमाण भी देती रहीं कि वो किसी साथी (बाघिन) की तलाश में जंगलों की ख़ाक छान रहा है। मार्च के बाद अप्रैल-मई 2024 से उस प्रवासी बाघ को बारनवापारा का जंगल रास आया, भोजन की पर्याप्त व्यवस्था के बीच गाहे-बगाहे किसी पालतू मवेशी का शिकार उसके पेट की ज्वाला को शांत करती रही लेकिन शारीरिक जरूरतों ने उसे चैन से सोने ना दिया । बलौदा बाजार के बारनवापारा क्षेत्र में बाघ की मौजूदगी पूरे नौ माह रही। इस दौरान वो वन विभाग और अफसरों की निगरानी में रहा, कई रास्तों को सुरक्षागत कारणों से बंद किया गया। बाघ पूरी तरह से महफ़ूज रहे इसकी निगरानी के लिये कई टीमें बनाई गईं। प्रवासी बाघ किसी और (बाघिन) तलाश में भटक रहा था, सुनते हैं कि विभाग ने उसकी जरूरत को पूरा करने की कागज़ी कार्रवाही पर ताकत झोंक दी मगर धरातल पर उन कागजी ताकतों का कोई सार्थक परिणाम नहीं दिखा, बाघ पकड़े जाने तक अकेला ही रहा।
जैसा की सभी को मालूम है, बारनवापारा के जंगलों में 90 के दशक तक बाघ की मौजूदगी के प्रमाण हैं, इसलिए वन विभाग एक बार फिर यहां बाघों का घरौंदा बसाने की तैयारी में था लेकिन भटक कर इलाके में आये बाघ को पहले दिन से ही पकड़ने की मंशा भी दिखाई देती रही। अगर मार्च महीने से प्रवासी बाघ की मौजूदगी को राज्य में देखें तो उसने एक भी इंसान पर ना अटैक किया, ना उसके द्वारा किसी आबादी क्षेत्र में पहुंचकर आतंक फैलाने की ख़बर सामने आई। जाहिर है वो शांत स्वभाव का था, सिर्फ अपने मकसद की तलाश में भटक रहा था। पिछले नौ महीनों में बलौदा बजार के बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी में उस बाघ का लोकेशन वन विकास निगम क्षेत्र में ज्यादा रहा। इस बीच कई अफवाहें, कई खबरें बनी और बनवाई गईं। अफ़सोस, इन महीनों में बाघ किस राज्य से पलायन कर यहाँ आया है इसका पता नहीं चल सका।
आपको बताते चलें कि प्रवासी बाघ सोमवार से बारनवापारा जंगल को छोड़ लवन की ओर आ गया था, ग्रामीणों ने कुछ खेतों में बाघ को चलते देखा तो किसी ने पंजों के निशान देखे। आबादी वाले इलाके में मौजूद बाघ कल (मंगलवार) सुबह कोट गाँव के रास्ते कसडोल शहर पहुंचा। उसने रायपुर-रायगढ़ मुख्य मार्ग को पार किया और गिरजाघर के पीछे खेत और झाड़ियों में शरण ली। बाघ के बढ़ते क़दमों पर विभागीय नज़र सिर्फ मौके की तलाश में थी, हजारों लोगों की भीड़ और आबादी क्षेत्र में बाघ को पकड़ना किसी चुनौती से कम नहीं था। खासकर बिना जनहानि के, मौक़ा देखते ही बाघ को ट्रैंकुलाइज किया गया। घंटों की मशक्त के बाद प्रवासी बाघ वन अमले के कब्जे में था, कुछ औपचारिकताओं के बाद बाघ के गले में रेडियो कॉलर लगाकर पिंजरे में डाल कर अगले पड़ाव के लिए रवाना कर दियाआते-जाते, गुरुघासीदास नेशनल पार्क प्रवासी बाघ का नया आशियाँ होगा, बाघिन की तलाश यहां पूरी होगी या फिर कोई और दास्ताँ इस बाघ के हिस्से ये आने वाला वक्त तय करेगा।
इस पूरे मामले में एक बात और गौर करने लायक है, क्या बाघ को सचमुच बारनवापारा में बसाने की योजना थी ? अगर हाँ, तो उस पारित प्रस्ताव का क्या हुआ जो तत्कालीन भूपेश सरकार में वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में लिया गया था। उस प्रस्ताव में बारनवापारा में बाघों के पुनस्थापन का जिक्र था।
इस धरती पर इंसान का अस्तित्व तभी तक है, जब तक की जंगल है और जंगलों में जितने जरुरी बाघ हैं। उससे कहीं अधिक अनिवार्यता हाथी की है, अफसोस छत्तीसगढ़ में दोनों की महत्ता और अनिवार्यता पर सरकार और वन विभाग गंभीर नहीं दिखता। हाथी मारे जा रहें हैं और बाघ पड़ोसी राज्यों से छत्तीसगढ़ के जंगल में आते-जाते हैं।