बैकुंठपुर। देवराहा बाबा सेवा समिति के तत्वावधान में जिला मुख्यालय स्थित प्रेमाबाग में श्री जग्गनाथ जी की रथ यात्रा शुरू हुई। रथ को सैकड़ो श्रद्धालुओ ने खिंचा और उसके शहर के विभिन्न मार्गों से होकर वापस राम मंदिर में उन्हें लाया गया।
रविवार को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा धूमधाम से निकाली गई। सुंदर रथ पर सजा कर भगवान श्रीकृष्ण, भाई बलराम तथा बहन सुभद्रा को नगर भ्रमण कराया गया। इस दौरान लोग रथ खींच कर निहाल हुए। रास्ते भर भगवान के जयकारे और झूमते हुए लोगों का जत्था चलता रहा। जिस स्थान से यह यात्रा गुजर रही थी वहां का माहौल भक्तिमय हो जा रहा था। रथ यात्रा से पहले जगन्नाथ मंदिर में स्नान आदि के उपरांत भगवान जगन्नाथ का अभिषेक किया। उनकी विशेष आरती की गई। इस मौके पर जगन्नाथ मंदिर की आकर्षक सजावट की गई। वहां से आरंभ होकर रथ यात्रा ने पूरे बाजार का भ्रमण किया। रथ यात्रा के बाद महा प्रसाद वितरण का भी आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने महा प्रसाद ग्रहण किया।
मथुरा और विजय की कहानी
रथयात्रा से जुड़ी सबसे प्रारंभिक कहानियों में से एक भगवान कृष्ण के बचपन से जुड़ी है। इस मिथक के अनुसार, कृष्ण और बलराम के मामा कंस ने उन्हें मारने की योजना बनाई थी। उसने उत्सव की आड़ में दोनों भाइयों को मथुरा में अपने महल में आमंत्रित किया, कंस इरादा उन्हें मारने का था। कंस ने कृष्ण और बलराम को गोकुल में उनके घर से लाने के लिए एक रथ भी भेजा था। मथुरा पहुंचने पर, कृष्ण ने आखिरकार कंस को हराया, और शहर को उसके अत्याचार से मुक्त कराया। इस दिन कृष्ण और बलराम ने अपनी जीत के बाद रथ पर सवार होकर मथुरा में परेड की थी।
द्वारका में रथ की सवारी
रथ यात्रा की कहानी से जुड़ी एक और मनमोहक कहानी द्वारका की भी है। ये कहानी भी कृष्ण के इर्द गिर्द घूमती है। वे अपने भाई बलराम के साथ, अपनी बहन सुभद्रा को भव्य द्वारका शहर में रथ पर बिठाकर ले गए थे। यह शहर के वैभव और उनकी शाही विरासत को प्रदर्शित करने का एक संकेत था। द्वारका के नागरिकों ने इस कार्यक्रम को बड़े उत्साह के साथ मनाया, और ऐसा माना जाता है कि रथ यात्रा के दौरान इस खुशी की सवारी को हर साल मनाया जाता है। रथ में कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की उपस्थिति भाई-बहनों की एकता और लोगों के साथ उनके संबंध का प्रतीक है।