बैकुण्ठपुर 19 जून। इन दिनों बैकुण्ठपुर का तहसील कार्यालय वन विभाग के आस्था भवन में संचालित है, और राजस्व अमले ने वन विभाग के भवन में रहने वाले कर्मचारियों को सीमांकन का नोटिस थमा दिया, नोटिस देख कर्मचारियों ने डीएफओ को इसकी जानकारी दी। इधर, इनसाइड स्टोरी ने मामले को खंगालना शुरू किया तो सीमांकन पर ब्रेक लग गया।
मामले में डीएफओ प्रभाकर खलखो का कहना है कि हमारे भवन काफी पुराने बने हुए है और वो हमारे उस समय के वर्किंग प्लान में दर्ज है। उन्होंने कहा कि वो जिला प्रशासन से आग्रह करेंगी कि वन विभाग की भूमि का नामान्तरण किया जाए।
जानकारी के अनुसार बैकुण्ठपुर शहर स्थित उपभोक्ता फोरम न्यायालय भवन से होकर खुटहनपारा की ओर जाने वाली सड़क के दाएं ओर वन विभाग के कुछ सरकारी आवास है, बीच मे एक मंदिर भी है, इन आवासों में वन विभाग के कर्मचारी निवासरत है, यह सर्वविदित है कि हर कोई जानता है कि वर्षों से यहां वन विभाग के सरकारी आवास स्थित है, अब अचानक राजस्व विभाग के तहसील कार्यालय से उन आवासों में रहने वाले कर्मचारियों के अलग अलग नाम लिखा नोटिस पहुंच गया, नोटिस में बताया गया कि भूमि किसी और की है और अब उसका सीमांकन होना है। कर्मचारियों ने राजस्व अमले के नोटिस की जानकारी तत्काल डीएफओ की दी। नोटिस सिर्फ कर्मचारियों को दिया गया था जबकि उसके आसपास के सभी रहवासियों को दिया जाना चाहिए था, नोटिस को लेकर भी कई सवाल खड़े हो रहे है। इधर, इस बात की जानकारी मिलते ही इनसाइड स्टोरी में मामले को खंगालना शुरू कियाज़ जिसके बाद सीमांकन पर ब्रेक लग गया है।
कर्मचारियों के नाम नोटिस क्यों
राजस्व अमले ने वन विभाग के कर्मचारियों के नाम से नोटिस क्यो भेजा, इसके पीछे क्या मंशा रही होगी? जबकि यह जानते हुए की वन विभाग के सरकारी आवास है। वन विभाग को नोटिस न भेजकर 5 कर्मचारियों को नोटिस किस आधार पर भेजा गया, क्या ये पांचों कर्मचारियों के नाम पर कोई प्लाट है वहां, या जिस भूमि पर आवास बने है वो रहने वाले कर्मचारियों के नाम पर दर्ज है क्या, इस तरह के दर्जनों सवाल खड़े हो रहे है कि आखिर राजस्व अमले ने वन कर्मचारियों के नाम से नोटिस क्यों भेजा?
गायब हो गई वन विभाग की भूमि
सरकारी आवास के सीमांकन को लेकर इनसाइड स्टोरी ने दस्तावेजों को खंगालना शुरू किया, वन विभाग के वर्किंग प्लान में आवास दर्ज है, समय समय पर वन विभाग आवास में रहने वालों को नोटिसज़ पैनल रेंट वसूल करने के साथ औऱ उसका मरम्मत भी करता आया है, वही नजूल रिकॉर्ड में भी इन आवासों की भूमि गायब हो गई है, आखिर भूमि गई तो गई कहाँ यह सवाल खड़ा हो गया है।
मामले में है कई पेच
अब तक वन विभाग की भूमि को लेकर कई चौकाने वाले बाते सामने आ रही है, इसमे भूमि अदला बदली से लेकर सरकारी भूमि को अपने नाम करा लेने की बात सूत्र बता रहे है, इससे जुड़ी नामान्तरण पंजी पुलिस में जप्त होने के कारण भी कुछ तथ्य सामने नही आ सके है। मामले में बेहद बारीकी से जांच की जरूरत है जिससे भूमि गायब कैसे हुई इस बात का पता चल सके।
रिकॉर्ड अब तक अपडेट नही
कोरिया जिले में कई सरकारी विभाग की सैकड़ो हेक्टेयर भूमि का नामान्तरण आज तक नही किया गया है, यही पूरे फसाद की जड़ है, इसमे सबसे ज्यादा जलसंसाधन विभाग की भूमि है, यही कारण है कि सबसे ज़्यादा जल संसाधन विभाग की भूमि पर कब्जा हो चुका है कई मामले में कोर्ट में जा पहुंचे है, तो कई में आये दिन विवाद हो रहा है, जमीन दलाल इसका जमकर फायदा उठा रहे है और ऐसी भूमि को हेरफर के बेचने में कामयाब भी हो रहे है। दरअसल, जल संसाधन की भूमि के भू अर्जन के बाद उसका मुआवजा भूमि स्वामी को देकर डेम बना किया गया पर उसका राजस्व विभाग ने रिकॉर्ड दुरुस्त नही है भूमि का नामांतरण नही होने पर आज भी भूमि उसी व्यक्ति के नाम दर्ज है जिसने मुआवजा ले लिया है, बस इसी का फायदा जमीन दलाल उठा रहे है, सरकारी भूमि के नामांतरण को लेकर अधिकारियों ने दर्जनों पत्र भेज कर राजस्व अधिकारियों से पत्राचार किया पर जानबूझकर अधिकारी सुनना नही चाहते, क्योंकि जमीन दलाल अधिकारियों पर भारी पड़ रहे है। ऐसा ही हाल वन विभाग की भूमि का है।