- -चन्द्रकान्त पारगीर
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा 13 जून 2025 को जारी आदेश, जिसके तहत शासकीय चिकित्सा महाविद्यालयों और उनसे जुड़े अस्पतालों में मीडिया की पहुंच पर कठोर नियंत्रण लागू किया गया है, न केवल प्रेस की स्वतंत्रता पर आघात है, बल्कि यह लोकतांत्रिक जवाबदेही के मूल सिद्धांतों के भी विरुद्ध है।
आदेश में कहा गया है कि मीडिया को अस्पताल के भीतर मरीजों से संबंधित क्षेत्रों में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी और किसी भी प्रकार की जानकारी, फोटो, या वीडियो बिना पूर्व स्वीकृति के सार्वजनिक नहीं की जा सकेगी। मीडिया को दी जाने वाली जानकारी को ‘नियंत्रित और प्रमाणित’ करने की बात कही गई है। सवाल यह है कि अगर सब कुछ पारदर्शी है, तो सूचनाओं को छुपाने की आवश्यकता क्यों?
इस आदेश से दो प्रमुख चिंताएं उभरती हैं-
1. जनहित की सूचनाओं पर अंकुश
चिकित्सा संस्थानों में होने वाली लापरवाही, संसाधनों की कमी, या प्रशासनिक अनियमितताओं को सामने लाने में मीडिया की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है। यह नया प्रोटोकॉल पत्रकारों के लिए इन घटनाओं की रिपोर्टिंग को लगभग असंभव बना देगा, जिससे न केवल जनता को सही जानकारी से वंचित किया जाएगा, बल्कि संस्थानों को जवाबदेह ठहराना भी मुश्किल हो जाएगा।
2. गोपनीयता की आड़ में अपारदर्शिता
मरीजों की निजता की रक्षा अत्यंत आवश्यक है — इस पर कोई विवाद नहीं। लेकिन गोपनीयता की आड़ में पूरी मीडिया कवरेज को नियंत्रित कर देना, लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वीकार्य नहीं हो सकता। बेहतर होता यदि सरकार गोपनीयता को सुनिश्चित करते हुए पारदर्शिता को बनाए रखने के संतुलित उपाय अपनाती।
क्या यह मीडिया का "शासन-प्रेरित शमन" है?
जिस समय राज्य के अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी, उपकरणों की खराब स्थिति, और इलाज में देरी जैसी समस्याएं आम हैं, उस समय मीडिया की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। शासन को चाहिए कि वह मीडिया को "सहयोगी" के रूप में देखे, "शत्रु" के रूप में नहीं। मीडिया के लिए नियुक्त संपर्क अधिकारी एक सकारात्मक पहल हो सकती थी, यदि इसका उद्देश्य संवाद और सूचना प्रवाह को सशक्त करना होता, न कि उसे सीमित करना।
बहरहाल, एक स्वस्थ लोकतंत्र में मीडिया का स्वतंत्र रूप से कार्य करना जरूरी है। अस्पताल जैसी संस्थाएं सीधे जनता से जुड़ी होती हैं, और उनके कामकाज की निगरानी भी उतनी ही जरूरी है। छत्तीसगढ़ सरकार को चाहिए कि वह इस आदेश की समीक्षा करे और ऐसा प्रोटोकॉल बनाए जो गोपनीयता, पारदर्शिता और प्रेस की स्वतंत्रता — तीनों के बीच संतुलन स्थापित करे। नहीं तो यह आदेश, लोकतंत्र के मूल मूल्यों पर एक कलंक बन जाएगा।