गुरु घासीदास तमोर पिंगला टाइगर रिज़र्व में स्टॉपडेम निर्माण कार्य पर उठे सवाल: पर्यावरणीय और प्रशासनिक अनियमितताओं का आरोप

Chandrakant Pargir

 


कोरिया, 9 अप्रैल। गुरु घासीदास तमोर पिंगला टाइगर रिज़र्व के सोनहत रेंज में मार्च महीने में प्रस्तावित स्टॉपडेम का निर्माण कार्य अब अचानक तेज़ी से किया जा रहा है। इस हड़बड़ी में बड़े पैमाने पर मशीनों का उपयोग हो रहा है, जिससे वन्यजीवों की शांति भंग हो रही है। अजाक्स, जेसीबी और कई ट्रैक्टरों की आवाजाही अब रिज़र्व क्षेत्र में आम हो गई है।



सूत्रों के अनुसार, इस निर्माण कार्य के लिए मार्च में ही राशि स्वीकृत कर आहरित कर ली गई थी,  अब जब मामला चर्चा में आया, तो आनन-फानन में स्टॉपडेम का काम शुरू कर दिया गया है। जानकारी के अनुसार, राशि की निकासी के लिए जिन कर्मचारियों के हस्ताक्षर नहीं लिए गए थे, अब उनसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाए जा रहे हैं। बता दें कि अब फंड निकासी की प्रक्रिया ऑनलाइन हो चुकी है, फिर भी इस प्रकार की गड़बड़ी पर सवाल उठ रहे हैं।



नकली या अप्रयुक्त सीमेंट का उपयोग?


रिज़र्व क्षेत्र में बनाए जा रहे दर्जनों स्टॉपडेम में 'Mycem' ब्रांड के सीमेंट का भारी उपयोग किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि यह सीमेंट छत्तीसगढ़ में पंजीकृत नहीं है और इसका प्रयोग मुख्यतः फ्लाई ऐश ईंट बनाने के लिए किया जाता है। निर्माण मानकों के अनुसार पुल, पुलिया और स्टॉपडेम जैसे संरचनाओं में 53 ग्रेड सीमेंट का उपयोग अनिवार्य होता है, लेकिन इस सीमेंट की गुणवत्ता और ग्रेड को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। इससे निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।



रेत की आपूर्ति पर भी उठे सवाल


रामगढ़ चंदहा इलाके में बन रहे स्टॉपडेम के लिए पैरी नदी से रेत लायी जा रही है। पैरी नदी में अच्छी गुणवत्ता की रेत प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, और इसी का फायदा उठाकर निर्माण के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है। आरोप है कि इस रेत के लिए अलग से बिल तैयार किया गया है, जिससे वित्तीय अनियमितताओं की आशंका और गहरा गई है।



वन संसाधनों का दुरुपयोग



स्टॉपडेम निर्माण में सहारे के लिए छोटे-छोटे पेड़ों की कच्ची लकड़ियों को काटकर इस्तेमाल किया जा रहा है, जोकि नियमों के खिलाफ है। टाइगर रिज़र्व जैसे संरक्षित क्षेत्रों में गिरी हुई लकड़ी तक को उठाना मना है, ऐसे में पेड़ों की कटाई करना गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। वन विभाग खुद इस नियम की अवहेलना कर रहा है।



तकनीकी मानकों की उड़ रही धज्जियाँ


सबसे चिंताजनक बात यह है कि स्टॉपडेम निर्माण का कार्य बिना किसी तकनीकी विशेषज्ञ की निगरानी में हो रहा है। निर्माण स्थल पर न तो कोई परियोजना प्रतिवेदन मौजूद है, न ही नक्शा या तकनीकी खाका। निर्माण कार्य में न बेस में लोहे की जाली डाली जा रही है और न ही कोई मानक प्रक्रिया अपनाई जा रही है। ऐसे में संरचनाओं की मजबूती और स्थायित्व पर सवाल उठना स्वाभाविक है।



मशीनों और ठेकेदारों का खेल


स्थानीय कर्मचारियों के अनुसार, निर्माण कार्य में लगी अजाक्स और जेसीबी मशीनें अजय सोनी नामक व्यक्ति की हैं। यही नहीं, निर्माण कार्य में लगे मजदूरों को भी जशपुर से वही लेकर आए हैं। बताया जा रहा है कि सरगुजा क्षेत्र के एक गेम रेंजर की संलिप्तता भी इस पूरे मशीन और मजदूर आपूर्ति प्रक्रिया में है। इससे सरकारी मशीनरी और निजी ठेकेदारों की मिलीभगत की आशंका जताई जा रही है।




टाइगर रिज़र्व जैसे संवेदनशील और संरक्षित क्षेत्र में इस प्रकार की लापरवाही और अनियमितताएं न केवल पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हैं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही पर भी बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती हैं। निर्माण कार्य की गुणवत्ता, वित्तीय पारदर्शिता और पर्यावरणीय नियमों की अवहेलना की स्वतंत्र जांच की मांग स्थानीय नागरिकों और पर्यावरण प्रेमियों द्वारा उठाई जा रही है।

यदि यह सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो टाइगर रिज़र्व की जैव विविधता और पर्यावरणीय संतुलन को अपूरणीय क्षति पहुँच सकती है।

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