रायपुर। बारनवापारा अभ्यारण्य से कोरिया स्थित गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में गौर (बायसन) के ट्रांसलोकेशन में बड़ी लापरवाही सामने आई है। वन विभाग की कार्रवाई पर सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि बायसन की मौत के बावजूद जिम्मेदार अधिकारी पर अब तक कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सहमति पर बारनवापारा से 40 गौर को ट्रांसलोकेट करने की प्रक्रिया चल रही थी। इसी कड़ी में 25 जनवरी 2025 को दो गौर को ट्रैंक्विलाइज कर रेस्क्यू वाहन में लाने की कोशिश की गई। इनमें से एक 2-3 साल की मादा गौर को सुरक्षित वाहन में रखा गया, लेकिन दूसरा गौर ट्रैंक्विलाइज के बाद जंगल में भाग गया।
इसके बाद भी निगरानी में वह गौर स्वस्थ पाया गया। लेकिन मादा गौर की हालत बिगड़ती गई और अंततः उसकी मौत हो गई। 2 मार्च 2025 को एक ऑनलाइन न्यूज पोर्टल इनसाइड स्टोरी पर गौर की मौत की खबर प्रकाशित हुई। इसमें दावा किया गया कि कालातीत (एक्सपायर्ड) दवा के इस्तेमाल के कारण बायसन की जान गई।
मामले की जांच के दौरान चौंकाने वाला खुलासा हुआ। बारनवापारा अभ्यारण्य के वन्यप्राणी चिकित्सा अधिकारी डॉ. राकेश कुमार वर्मा ने ट्रैंक्विलाइजेशन के लिए Activon (Diprenorpine HCl) नामक दवा का उपयोग किया, जिसका बैच नंबर 123040 था और यह मार्च 2024 में ही एक्सपायर हो चुकी थी।
डॉ. वर्मा ने दवा की एक्सपायरी की जानकारी न तो विभागीय अधिकारियों को दी और न ही ट्रांसलोकेशन के समय इस महत्वपूर्ण तथ्य को साझा किया। यही नहीं, ट्रैंक्विलाइजेशन के दौरान भी लापरवाही बरती गई, जिसके चलते एक गौर को अत्यधिक मात्रा में दवा देने के कारण वह अधिक समय तक निश्चेतन अवस्था में रहा और ट्रांसलोकेट नहीं हो पाया।
वन विभाग की ढिलाई पर उठे सवाल
गौर की मौत के मामले में डॉक्टर की गंभीर लापरवाही साफ तौर पर सामने आई है। लेकिन अब तक वन विभाग ने सिर्फ डॉ. राकेश कुमार वर्मा को हटाने तक की कार्रवाई की है। उनके खिलाफ अब तक किसी भी प्रकार की सख्त अनुशासनात्मक या कानूनी कार्यवाही नहीं की गई है।
इस पूरे मामले को सबसे पहले "इनसाइड स्टोरी" ने उजागर किया था, जिसके बाद विभागीय स्तर पर हलचल मची। अब देखना होगा कि वन्यप्राणी संरक्षण के इस गंभीर मामले में दोषी अधिकारी के खिलाफ क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।