सरकारी दस्तावेजों में हेरफेर मामले में इनसाइड स्टोरी, 5 पर हुआ है एफआईआर, आगे और कई उठते सवाल

Chandrakant Pargir

 



एमसीबी। मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर के मनेन्द्रगढ़ तहसील में शासन से प्राप्त भूमि खसरा नंबर 198/1 रकबा 22 एकड़ पर कूट रचना करने वाले फर्जी विक्रेता सहित चार शासकीय कर्मियों पर एफ.आई.आर. दर्ज कर ली गई है।


मामले की इनसाइड स्टोरी यह है कि खसरा नंबर 198/1 भूमि आवेदक के दादा को शासकीय पट्टे पर मिली थी, दादा मूलचंद की मृत्यु के बाद उनके पुत्र ज्ञानचंद वैश्य, वृंदावन वैश्य एवं सेवाराम वैश्य का नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज हुआ,  वर्ष 1978 में राजेश पुरी ने विधि विरुद्ध तरीके से तीनों भाइयों से उक्त भूमि क्रय कर ली, यह जमीन शासकीय पट्टे पर प्राप्त थी, इस कारण से उक्त भूमि की बिक्री में कलेक्टर अनुमति आवश्यक एवं अनिवार्य थी । इसके बावजूद राजेश पुरी ने तीनों भाइयों पर दबाव डालकर उक्त भूमि को क्रय कर लिया था।



सरकारी भूमि दर्ज किए जाने का हुआ आदेश


कुछ समय के बाद राजेश पुरी द्वारा क्रय की गई भूमि की शिकायत अपर कलेक्टर मनेंद्रगढ़ से की गई, तब अपर कलेक्टर मनेंद्रगढ़ में सभी पक्षों की सुनवाई करते हुए राजस्व अभिलेखों में राजेश पुरी के स्थान पर छत्तीसगढ़ शासन नाम दर्ज करने का आदेश पारित किया गया और समयानुसार अभिलेखों में शासन का नाम दर्ज हो गया । अपर कलेक्टर मनेंद्रगढ़ के आदेश के विरुद्ध प्रार्थी के पिता एवं विरोधी पक्ष दोनों ने कमिश्नर अंबिकापुर के न्यायालय में अपील प्रस्तुत की।



कमिश्नर ने अपील निरस्त की

कमिश्नर सरगुजा ने बिना पक्षकार बनाएं प्रार्थी की अपील निरस्त कर दी ।  कमिश्नर के आदेश के विरुद्ध मामला राजस्व मंडल पहुंचा ।  न्यायालय राजस्व मंडल ने प्रार्थी को पक्षकार बनाते हुए,  गुण दोष के आधार सुनवाई करने के लिए निर्देशित किया इधर, अधिवक्ता की मदद से राजेश पुरी की ओर से चाल चली गई , अरविंद वैश्य के पक्षकार बनाने के विषय में राजस्व मंडल के निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय की शरण लेकर स्थगन आदेश प्राप्त किया।


स्थगन के बाद शुरू हुआ कूट रचना का खेल

मामला करोड़ो की भूमि का था तो शासकीय कर्मचारियों ने करोड़ों रुपए के लालच में राजस्व रिकॉर्ड में छत्तीसगढ़ शासन मद में दर्ज भूमि को बिना किसी शासकीय आदेश के राजेश पुरी के नाम पर दर्ज कर दिया। स्थगन रहते हुए  जमीन बिक्री कर दी और करोड़ों का लाभ प्राप्त कर लिया। हालांकि मामला उच्च न्यायालय बिलासपुर में लंबित रहते हुए कूटरचना कर वकील साहब ने एक नेताजी से सौदा कर भूमि का विक्रय करोड़ों में किया,  बदले में कमीशन के रूप में लगभग तीन एकड़ जमीन अपनी बहू के नाम पर क्रय की। वकील साहब ने करोड़ों कमाने का मकसद पूरा होने के बाद माननीय उच्च न्यायालय में दायर मामले को वापस लेकर नेताजी की सहायता से कमिश्नर न्यायालय अंबिकापुर में स्थगित मामले की सुनवाई कराकर फैसला अपने पक्ष में करवा लिया। इन्हीं उक्त बातों को ध्यान में रखते हुए माननीय सिविल न्यायालय ने धारा 420, 467, 468, एवं 471 के तहत एफ. आई. आर. दर्ज करने के आदेश दिया और पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है।




और भी कई है पेंच

मौके पर लगभग 3 एकड़ भूमि थी डायवर्टेड, डायवर्टेड भूमि पर भी कलेक्टर परमिशन अनिवार्य है । मामले में लगभग 90 लाख से ज्यादा की टैक्स चोरी का मामला भी दिखता है, इसके अलावा टैक्स चोरी करने के लिए राजस्व अभिलेख में भी छेड़खानी की गई, रजिस्ट्रार कार्यालय से प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार किसी भी डायवर्टेड भूमि की रजिस्ट्री नहीं हुई । तब यह बात सामने आती है कि डायवर्सन किसने हटाया ? किसके आदेश से हटाया गया ?

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