बिलासपुर। छत्तीसगढ़ राज्य में मेडिकल प्रवेश प्रक्रिया के अंतर्गत लागू एनआरआई (अनिवासी भारतीय) कोटे को लेकर एक अहम मोड़ सामने आया है। हाईकोर्ट ने इस विषय में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब माँगा है।
यह याचिका रायपुर निवासी अधिवक्ता प्रेम नारायण शुक्ला द्वारा दाखिल की गई, जिसमें एडवोकेट जयप्रकाश शुक्ला के माध्यम से यह मांग की गई कि राज्य में एनआरआई कोटा को चुनौती दी जाए। याचिकाकर्ता ने कहा है कि छत्तीसगढ़ मेडिकल एडमिशन रूल्स 2018 के तहत बनाए गए नियमों में एनआरआई कोटे का जो प्रावधान है, वह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरुद्ध है।
याचिका में विशेष रूप से रूल 13(1) का उल्लेख किया गया है, जिसमें एनआरआई की परिभाषा को व्यापक रूप से रखा गया है। शुक्ला ने कोर्ट में दलील दी कि इसमें एनआरआई की परिभाषा को बहुत लचीला बनाकर छात्रों को गलत तरीके से लाभ दिलाने की संभावनाएं बनती हैं। यह सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट गाइडलाइंस के विरुद्ध है।
मुख्य सुनवाई डिवीजन बेंच में
मुख्य न्यायाधीश और जस्टिस बीडी कुबेर की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की और राज्य शासन से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया कि एनआरआई कोटा केवल उन्हीं विद्यार्थियों के लिए होना चाहिए जिनके माता-पिता वास्तव में अनिवासी भारतीय हैं। पूर्व में महाराष्ट्र राज्य के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ऐसा ही निर्णय दिया था।
दूसरे राज्यों का भी हवाला
अधिवक्ता शुक्ला ने अपनी दलीलों में यह भी बताया कि पंजाब और हरियाणा में भी राज्य सरकार द्वारा लाए गए इसी तरह के नियमों को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। उन्होंने इस आधार पर छत्तीसगढ़ में लागू नियमों को भी सुप्रीम कोर्ट की भावना के अनुरूप संशोधित करने की मांग की है।
अगली सुनवाई में राज्य शासन को देना होगा जवाब
हाईकोर्ट के निर्देशानुसार अब छत्तीसगढ़ शासन को अगली सुनवाई से पहले इस मुद्दे पर अपना पक्ष स्पष्ट रूप से रखना होगा। यह मामला न केवल मेडिकल प्रवेश से जुड़े छात्रों और अभिभावकों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि शिक्षा नीति और आरक्षण प्रणाली की पारदर्शिता के दृष्टिकोण से भी व्यापक असर डाल सकता है।