रायपुर। छत्तीसगढ़ में मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। पारदर्शिता की कमी और चयन समिति की प्रक्रिया को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, इस पद पर भ्रष्ट नौकरशाहों और अधिकारियों की नियुक्ति की संभावना जताई जा रही है, जिससे पूरे मामले पर विवाद खड़ा हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी?
सूचना आयुक्त और मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम की धारा 12(5) और 15(5) में स्पष्ट प्रावधान हैं। सुप्रीम कोर्ट ने नामित शर्मा बनाम भारत सरकार (2012) के मामले में 3 सितंबर 2013 को अपने आदेश में कहा था कि इस पद पर केवल उन्हीं व्यक्तियों की नियुक्ति होनी चाहिए, जो जनजीवन में प्रख्यात हों और जिनके पास विधि, विज्ञान, समाज सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंपर्क, प्रशासन या शासन के क्षेत्र में व्यापक ज्ञान और अनुभव हो।
हालांकि, सूत्रों की मानें तो छत्तीसगढ़ में नियुक्त किए गए वर्तमान सूचना आयुक्त इन योग्यताओं पर खरे नहीं उतरते। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस नियुक्ति को अदालत में चुनौती दी जाए, तो कई नियुक्तियों को अवैध घोषित किया जा सकता है।
कौन कहलाएगा "जनजीवन में प्रख्यात" व्यक्ति?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, "जनजीवन में प्रख्यात" व्यक्ति होने के लिए केवल प्रशासनिक अनुभव पर्याप्त नहीं है। उस व्यक्ति ने समाज में अपने कार्यों और योगदान से पहचान बनाई हो, जनता के हित के लिए काम किया हो, और व्यापक ज्ञान तथा अनुभव रखा हो — यह अनिवार्य है।
उदाहरण: अगर कोई आयकर आयुक्त अपने सरकारी कार्यों के अलावा समाज सेवा के कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाता है, जैसे वृद्धाश्रम या स्कूल-कॉलेज संचालित करता है और उसे समाज में पहचान मिलती है, तभी वह जनजीवन में प्रख्यात माना जाएगा। वहीं, केवल प्रशासनिक पदों पर काम करने और सरकारी जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए प्राप्त वेतन से किए गए कार्य इस श्रेणी में नहीं आते।
क्या चयन प्रक्रिया पारदर्शी है?
सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए गठित चयन समिति पर भी सवाल उठ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि समिति को यह बताना आवश्यक है कि क्यों और किस आधार पर किसी व्यक्ति को "जनजीवन में प्रख्यात" और "अपने क्षेत्र में व्यापक ज्ञान और अनुभव" वाला माना गया है। इसके अलावा, समिति को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता बनी रहे और जनता को मांगे जाने पर पूरी जानकारी उपलब्ध कराई जाए।
संविधान का उल्लंघन?
विशेषज्ञों का कहना है कि सूचना आयोग में की गई कई नियुक्तियां संविधान और RTI अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ हैं। यदि इन नियुक्तियों को अदालत में चुनौती दी जाए, तो बड़े पैमाने पर पदमुक्ति हो सकती है।
सरकार को कदम उठाने की जरूरत
विवादों को देखते हुए यह जरूरी है कि छत्तीसगढ़ सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और अधिनियम के प्रावधानों का पालन करे। सूचना आयुक्त और मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति में पारदर्शिता, योग्यता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जाए, ताकि जनता का विश्वास कायम रह सके।