भारतनेट बनाम स्टारलिंक — डिजिटल इंडिया की दौड़ में संतुलन ज़रूरी

Chandrakant Pargir

 


-चन्द्रकान्त पारगीर

                देश की डिजिटल प्रगति के मार्ग पर जब हम तेज़ी से बढ़ रहे हैं, तब तकनीक में सुधार और नवाचार अनिवार्य बनते जा रहे हैं। लेकिन हर नई तकनीक अपने साथ कुछ चुनौतियाँ भी लेकर आती है। इसी परिप्रेक्ष्य में भारतनेट और स्टारलिंक जैसी परियोजनाओं की तुलना दिलचस्प और प्रासंगिक हो जाती है।


भारतनेट: एक सुदृढ़ आधार


भारतनेट परियोजना ने ग्रामीण भारत में इंटरनेट कनेक्टिविटी की दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाया है। 2011 से शुरू हुई यह परियोजना अब तक 2.14 लाख ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर, रेडियो और सैटेलाइट तकनीकों के माध्यम से जोड़ चुकी है। 6.92 लाख किलोमीटर से अधिक फाइबर बिछाया जा चुका है और लाखों FTTH कनेक्शन तथा वाई-फाई हॉटस्पॉट लगाए जा चुके हैं।


सरकार ने 2025 तक इस प्रयास को और तेज़ करने के लिए ₹22,000 करोड़ का बजट आवंटन किया है। यह राशि विशेष रूप से गाँवों के सरकारी स्कूलों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने में सहायक होगी। इतना ही नहीं, ₹99 प्रतिमाह की दर पर इंटरनेट सेवाएँ उपलब्ध करवा कर भारतनेट ने ग्रामीण भारत में डिजिटल समावेशन को व्यवहारिक और किफायती बनाया है।


स्टारलिंक: तकनीकी उन्नयन की दिशा में एक नई शुरुआत


दूसरी ओर, स्टारलिंक जैसी सेटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवा आधुनिक तकनीक का उदाहरण है, जो दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में भी हाई-स्पीड इंटरनेट पहुँचाने का दावा करती है। भारत सरकार द्वारा हाल ही में इसे मंजूरी मिलना एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सेवा विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए उपयोगी साबित हो सकती है जहाँ फाइबर केबल बिछाना मुश्किल है।


हालाँकि, इसकी लागत फिलहाल एक बड़ी बाधा है। पड़ोसी देश बांग्लादेश में इसके मासिक शुल्क ₹3,000 तक और इंस्टॉलेशन खर्च ₹35,000 तक पहुँचते हैं। यदि भारत में भी यही दरें लागू होती हैं, तो यह सेवा सामान्य ग्रामीण उपभोक्ताओं की पहुँच से बाहर हो सकती है।


भविष्य की राह: समावेश और तकनीकी समन्वय


यह स्पष्ट है कि भारतनेट जैसी परियोजनाएँ अभी भी भारत की डिजिटल रणनीति की रीढ़ बनी रहेंगी। लेकिन उन्हें समय के साथ तकनीकी रूप से अद्यतन करने की आवश्यकता है। स्टारलिंक जैसी सेवाओं से प्रतिस्पर्धा और प्रेरणा मिल सकती है कि कैसे नई तकनीकों को अपनाकर मौजूदा नेटवर्क को और अधिक कुशल बनाया जा सकता है।


सरकार को चाहिए कि वह एक संतुलन बनाए—जहाँ एक ओर भारतनेट जैसी सस्ती और व्यापक पहुँच वाली योजनाओं को मज़बूती मिले, वहीं दूसरी ओर उन्नत तकनीकों को भी सहयोग दिया जाए, ताकि वे भारत के डिजिटल भविष्य में अपनी भूमिका निभा सकें।


 डिजिटल इंडिया की यह यात्रा केवल नई तकनीकों को अपनाने से नहीं, बल्कि उन्हें भारतीय ज़रूरतों और सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में ढालने से ही सफल हो सकेगी। भारतनेट और स्टारलिंक दोनों एक-दूसरे के पूरक बन सकते हैं—बस नीति, नियोजन और प्राथमिकता में समरसता ज़रूरी है।


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